पृष्ठ:तितली.djvu/१३

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मधुवा से तेल मलवाते हुए चौबेजी ने पूछा-क्यों जी! तुम यहां कहां रहते हो? क्या काम करते हो? क्या तुम इस बुड्ढे के यहां नौकर हो? उसके लड़के तो नहीं मालूम पड़ते?

परंतु मधुवा चुप था।

चौबेजी ने घबराकर कहा—बस करो, अब दर्द नहीं रहा। वाह-वाह!

यह तेल है या जादू! जाओ भाई, तुम भी सो रहो। नहीं-नहीं ठहरो तो, मुझे थोड़ा पानी पिला दो।

मधुवा चुपचाप उठा और पानी के लिए चला। तब चौबेजी ने धीरे-से बटुआ खोलकर मिठाई निकाली, और खाने लगे। मधुवा इतने में न जाने कब लोटे में जल रखकर चला गया था।

और बंजो सो गई थी। आज उसने नमक और तेल से अपनी रोटी भी नहीं खाई। आज पेट के बदले उसके हृदय में भूख लगी थी। शैला से मित्रता शैला से मधुर परिचय के लिए न-जाने कहां की साध उमड़ पड़ी थी। सपने-पर-सपने देख रही थी। उस स्वप्न की मिठास में उसके मुख पर प्रसन्नता की रेखा उस दरिद्र-कुटीर में नाच रही थी।



2.

धामपुर एक बड़ा ताल्लुका है। उसमें चौदह गांव हैं। गंगा के किनारे-किनारे उसका विस्तार दूर तक चला गया है। इन्द्रदेव यहीं के युवक जमींदार थे। पिता को राजा की उपाधि मिली थी।

बी.ए. पास करके जब इन्द्रदेव ने बैरिस्टरी के लिए विलायत-यात्रा की, तब पिता के मन में बड़ा उत्साह था।

किंतु इन्द्रदेव धनी के लड़के थे। उन्हें पढ़ने-लिखने की उतनी आवश्यकता न थी, जितनी लंदन का सामाजिक बनने की!

लंदन नगर में भी उन्हें पूर्व और पश्चिम का प्रत्यक्ष परिचय मिला। पूर्वी भाग में। पश्चिमी जनता का जो साधारण समुदाय है, उतना ही विरोधपूर्ण है, जितना कि विस्तृत पूर्व और पश्चिम का। एक ओर सुगंध जल के फव्वारे छूटते हैं, बिजली से गरम कमरों में जाते ही कपड़े उतार देने की आवश्यकता होती है; दूसरी ओर बरफ और पाले में दूकानों के चबूतरों के नीचे अर्ध-नग्न दरिद्रों का रात्रि-निवास।

इन्द्रदेव कभी-कभी उस पूर्वी भाग में सैर के लिए चले जाते थे।

एक शिशिर रजनी थी। इन्द्रदेव मित्रों के निमंत्रण से लौटकर सड़क के किनारे, मुंह पर अत्यंत शीतल पवन का तीखा अनुभव करते हुए, बिजली के प्रकाश में धीरे-धीरे अपने मेस' की ओर लौट रहे थे। पल के नीचे पहंचकर वह रुक गए। उन्होंने देखा-कितने ही अभागे, पुल की कमानी के नीचे अपना रात्रि-निवास बनाए हुए, आपस में लड़-झगडु रहे हैं। एक रोटी पूरी ही खा जाएगा!—इतना बड़ा अत्याचार न सह सकने के कारण जब तक स्त्री उसके हाथ से छीन लेने के लिए अपनी शराब की खुमारी से भरी आखों को चढ़ाती ही