पृष्ठ:तितली.djvu/१४०

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पाठशाला का काम अच्छी तरह चलता है। कुछ मुझे बच भी जाता है। जमींदार ने मेरी पुरखों की डीह ले ली। मुझे माफी पर भी लगान देना पड़ रहा है। और मुझे इस विपत्ति में डालने वाले हैं यहां के जमींदार और तहसीलदार साहब! तब भी आप लोग कहते हैं कि मैं उन्हीं लोगों से सहायता लूँ!

हां, मैं तो उचित समझता हूं। इस अवस्था में तो तुम्हें और भी सहायता मिलनी चाहिए और तुमने तो मेरे चकबंदी के काम में...।

सहायता की है—यही न आप कहना चाहते हैं? वह तो मेरे हित की बात थी, मेरा स्वार्थ था। देखिए, उस खेत के मिल जाने से मैं अपना पुराना टीला खुदवाकर उसकी मिट्टी से ईंटें बनवा रही हूं। उधर समतल होकर वह बनजरिया को रामजस वाले खेत से मिला देगा।

तुमसे मैं और भी सहायता चाहता हूं।

मैं क्या सहायता दे सकूंगी?

तुम कम-से-कम स्त्री-किसानों को बदले के लिए समझा सकती हो, जिससे गांव में सुधार का काम सुगमता से चले।

जमींदार साहब के रहते वह सब कुछ नहीं हो सकेगा। सरकार कुछ कर नहीं सकती। उन्हें अपने स्वार्थ के लिए किसानों में कलह कराना पड़ेगा। अभी-अभी देखिए न, घूर के लिए मुकदमा हाईकोर्ट में लड़ रहा है! तहसीलदार को कुछ मिला! उसने वहां से एक किसान को उभारकर घूर न फेंकने के लिए मार-पीट करा दी। वह घूर फेंकना बंद कर उस टुकड़े को नजराना लेकर दूसरे के साथ बंदोबस्त करना चाहता है। यदि आप लोग वास्तविक सुधार करना चाहते हों, तो खेतों के टुकड़ों को निश्चित रूप में बांट दीजिए और सरकार उन पर मालगुजारी लिया करे।—कहते हुए तितली ने व्यंग्य से इंद्रदेव की ओर देखा और फिर उसने कहा—क्षमा कीजिए, मैंने विवश होकर यह सब कहा।

इंद्रदेव हतप्रभ हो रहे थे, उन्होंने कहा—अरे, मैं तो अब जमींदार नहीं हूं। हां, आप जमींदार नहीं हैं तो क्या, आपने त्याग किया होगा। किंतु उससे किसानों को तो लाभ नहीं हुआ।—घुटते ही तितली ने कहा। उसका बच्चा रोने लगा था। एक बड़ी-सी लड़की उसे ले कर राजो के पास चली गई। किंतु तुम तो ऐसा स्वप्न देख रही हो जिसमें आंख खुलने की देर है। वाट्सन ने कहा।

यह ठीक है कि मरने वाले को कोई जिला नहीं सकता। पर उसे जिलाना ही हो, तो कहीं अमृत खोजने के लिए जाना पड़ेगा।—तितली ने कहा।

उधर शैला मौन होकर तितली के उस प्रतिवाद करने वाले रूप को चकित होकर देख रही थी। और इंद्रदेव सोच रहे थे—तितली! यही तो है, एक दिन मेरे साथ इसी के ब्याह का प्रस्ताव हुआ था। उस समय मैं हंस पड़ा था, संभवत: मन-ही-मन। आज अपनी दुर्बलता में, अभावों और लघुता में, दृढ़ होकर खड़ी रहने में यह कितनी तत्पर है! यही तो हम खोज रहे थे न। मनुष्य गिरता है। उसका अंतिम पक्ष दुर्बल है—सम्भव है कि वह इसीलिए मर जाता है। परंतु...परंतु जितने समय तक वह ऐसी दृढ़ता दिखा सके, अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर सके, उतने क्षण तक क्या जिया नहीं। मैं तो समझता हूं कि उसके जन्म लेने का उद्देश्य सफल हो गया। तितली वास्तव में महीयसी है, गरिमामयी है। शैला! वह अपने लिए सब