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पृष्ठ:तितली.djvu/६०

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अस्पताल खुल जाएगा।...क्यों, इधर मधुबन से तुमसे भेंट नहीं हुई क्या?

तितली लज्जित-सी सिर नीचा किए बोली—नहीं, आज कई दिनों से भेंट नहीं हुई।—उसके हृदय में धड़कन होने लगी।

ठीक है, कोठी में काम की बड़ी जल्दी है। इसी से आजकल छुट्टी न मिलती होगी—अच्छा तो तितली, आज मैं मधुबन को तुम्हारे पास भेज दूंगी।—कहकर शैला मुस्कुराई।

नहीं-नहीं, आप क्या कर रही हैं। मैंने सुना है कि वह घर भी नहीं जाते। उन्हें...

क्यों? यह तो मैं भी जानती हूं।—फिर चिंतित होकर शैला ने कहा—क्या राजकुमारी का कोई संदेश आया था?

नहीं।—अभी तितली और कुछ कहना ही चाहती थी कि सामने से मधुबन आता दिखाई पड़ा। उसकी भवें तनी थीं। मुंह रूखा हो रहा था। शैला ने पूछा—क्यों मधुबन, आज-कल तुम घर क्यों नहीं जाते?

जाऊंगा!—विरक्त होकर उसने कहा।

कब?

कई दिन का पाठ पिछड़ गया है। रोटी खाने के समय से जाऊंगा।

अच्छी बात है! देखो, भूलना मत!—कहती हुई शैला चली गई; और अब सामने खड़ी रही तितली। उसके मन में कितनी बातें उठ रही थीं, किंतु जब से उसके ब्याह की बात चल पड़ी थी, वह लज्जा का अधिक अनुभव करने लगी थी। पहले तो वह मधुबन को झिड़क देती थी, रामनाथ से मधुबन के संबंध में कुछ उलटी-सीधी भी कहती पर न जाने अब वैसा साहस उसमें क्यों नहीं आता। वह जोर करके बिगडना चाहती थी, पर जैसे अधरों के कोनों में हंसी फूट उठती! बड़े धैर्य से उसने कहा—आजकल तुमको रूठना कब से आ गया है।

मधुबन की इच्छा हुई कि वह हंसकर कह दे कि—जब से तुमसे ब्याह होने की बात चल पड़ी है;—पर वैसा न कहकर उसने कहा—हम लोग भला रूठना क्या जानें, यह तो तुम्हीं लोगों की विद्या है।

तो क्या मैं तुमसे रूठ रही हूं?—चिढ़े हुए स्वर में तितली ने कहा।

आज न सही, दो दिन में रूठोगी। उस दिन रक्षा पाने के लिए आज से ही परिश्रम कर रहा हूं! नहीं तो सुख की रोटी किसे नहीं अच्छी लगती?

तितली इस सहज हंसी से भी झल्ला उठी। उसने कहा—नहीं-नहीं, मेरे लिए किसी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं।

तब तो प्राण बचे। अच्छा, पहले बताओ कि शेरकोट से कोई आया था? रामदीन की नानी; वही आकर कह गई होगी। उसकी टांगें तोड़नी ही पड़ेगी।

अरे राम! उस बेचारी ने क्या किया है!

मधुबन और कुछ कहने जा रहा था कि रामनाथ ने उसे दूर से ही पुकारा—मधुबन!

दोनों ने घूमकर देखा कि बनजरिया के भीतर इंद्रदेव अपने घोड़े को पकड़े हुए धीरे-धीरे आ रहे हैं! तितली संकुचित होती हुई झोंपड़ी की ओर जाने लगी और मधुबन ने नमस्कार किया।

किंतु एक दृष्टि में इंद्रदेव ने उस सरल ग्रामीण सौंदर्य को देखा। उन्हें कुतूहल हुआ। उस दिन बनजरिया के साथ तितली का नाम उनकी कचहरी में प्रतिध्वनित हो गया था। वह