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पृष्ठ:तितली.djvu/९

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इसके भीतर इतना लंबा-चौड़ा मैदान हो सकता है।

देहात के मुक्त आकाश में अंधकार धीरे-धीरे फैल रहा था। अभी सूर्य की अस्तकालीन लालिमा आकाश के उच्च प्रदेश में स्थित पतले बादलों में गुलाबी आभा दे रही थी।

बंजो, बंदूक का शब्द सुनकर, बाहर तो आई; परंतु वह एकटक उसी गुलाबी आकाश को देखने लगी। काली रेखाओं-सी भयभीत कराकुल पक्षियों की पंक्तियां 'करररर-करी' करती हुई संध्या की उस शांत चित्रपटी के अनुराग पर कालिमा फेरने लगी थीं।

हाय राम! इन कांटों में-कहां आ फंसा!

बंजो कान लगाकर सुनने लगी।

फिर किसी ने कहा-नीचे करार की ओर उतरने में तो गिर जाने का डर है, इधर ये कांटेदार झाड़ियां! अब किधर जाऊं?

बंजो समझ गई कि शिकार खेलने वालों में से कोई इधर आ गया है। उसके हृदय में विरक्ति हुई— उंह, शिकारी पर दया दिखाने की क्या आवश्यकता? भटकने दो।

वह घूमकर उसी मैदान में बैठी हुई एक श्यामा गौ को देखने लगी। बड़ा मधुर शब्द सुन पड़ा-चौबेजी! आप कहां हैं?

अब बंजो को बाध्य होकर उधर जाना पड़ा। पहले कांटों में फंसने वाले व्यक्ति ने चिल्लाकर कहा—खड़ी रहिए; इधर नहीं ऊहूं- ऊं! उसी नीम के नीचे ठहरिए, मैं आता हूं! इधर बड़ा ऊंचा-नीचा है।

चौबेजी, यहां तो मिट्टी काटकर बड़ी अच्छी सीढ़ियां बनी हैं;मैं तो उन्हीं से ऊपर आई हूं।—रमणी के कोमल कंठ से यह सुन पड़ा।

बंजो को उसकी मिठास ने अपनी ओर आकृष्ट किया। जंगली हिरन के समान कान उठाकर वह सुनने लगी।

झाड़ियों के रौंदे जाने का शब्द हुआ फिर वही पहिला व्यक्ति बोल उठा लीजिए, मैं तो किसी तरह आ पहुंचा, अब गिरा तब गिरा, राम-राम! कैसी सांसत! सरकार से मैं कह रहा था कि मुझे न ले चलिए। मैं यहीं चूड़ा-मटर की खिचड़ी बनाऊंगा। पर आपने भी जब कहा, तब तो मुझे आना ही पड़ा। भला आप क्यों चली आईं?

इन्द्रदेव ने कहा कि सुर्खाब इधर बहुत हैं, मैं उनके मुलायम पैरों के लिए आई। सच चौबेजी, लालच में मैं चली आई। किंतु छरों से उनका मरना देखने में मुझे सुख तो न मिला। आह! कितना बेधड़क वे गंगा के किनारे टहलते थे! उन पर विनचेस्टर-रिपीटर के छरों की चोट! बिल्कुल ठीक नहीं। मैं आज ही इन्द्रदेव को शिकार खेलने से रोकूगी—आज ही।

अब किधर चला जाए?—उत्तर में किसी ने कहा।

चौबेजी ने डग बढ़ाकर कहा—मेरे पीछे-पीछे चली आइए।

किंतु मिट्टी बह जाने से मोटी जड़ नीम की उभर आई थी, उसने ऐसी करारी ठोकर लगाई कि चौबेजी मुंह के बल गिरे।

रमणी चिल्ला उठी। उस धमाके और चिल्लाहट ने बंजो को विचलित कर दिया।वह कंटीली झाड़ी को खींचकर अंधेरे में भी ठीक-ठीक उसी सीढ़ी के पास जाकर खड़ी हो गई, जिसके पास नीम का वृक्ष था।

उसने देखा कि चौबेजी बुरी तरह गिरे हैं। उनके घुटने में चोट आ गई है। वह स्वयं