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पृष्ठ:तिलस्माती मुँदरी.djvu/६१

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तिलिस्माती मुँदरी


की खुली जगह में पहुंच गई। वहां से अंधेरे में टटोलती हुई कोतवाल के बाग़ की चहार दीवारी की तरफ़ चली और चाहती थी कि किसी तरकीब के दीवार को लांघ जावे और बग़ैर आहट के कोतवाल के मकान के अन्दर पहुंच जावे कि उसे उसके पुराने दोस्त उल्लू उल्लन पंख फटफटाते उस के सिर के ऊपर सितारों को कमजोर रोशनी में दिखाई दिये। उसने उनको पुकारा और पूछा कि कहीं उन्होंने उसका तोता या दोनों कौए तो नहीं देखे हैं-उल्लू दीवार पर बैठ कर बोला-"हां हां, वह तीनों इसी खंडहर में बसेरा कर रहे हैं, और दिन भर चारों तरफ़ तेरी तलाश में उड़ते फिरे थे" लड़की ने मिन्नत की-"ओह, मझे उन के पास ले चलो" उल्लू तुरन्त खंहडर के अन्दर उड़ गया और तोते को अपने पीछे पंख फटफटाते हुए साथ लेकर फ़ौरन फिर हाज़िर हुआ। तोता बड़े जोश के साथ चीख मार कर राजा की लड़की की गोद में उड़ कर जा बैठा और बोला-"ऐ मेरी प्यारी बच्ची, क्या सचमुच तू मुझ को फिर मिल गई, मैं ने तो समझ लिया था कि तू किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई है और अब न मिलेगी!” लड़की ने उसको सारा किस्सा सुना दिया कि वह खंडहर से किस तरह भाग गई थी और कहा कि “अब मैं कोतवाल के बाग़ के अन्दर पहुंचने की कोशिश कर रही हूं, मगर तोते ने उसे रोक दिया और बतला दिया कि बजाय उसके वह लोग दयादेई को पकड़ ले गये हैं। यह सुन कर राजा की लड़की को बहुत अफ़सोस और फ़िक्र हुआ और कहने लगी कि "मैं दयादेई के बचाने के लिये अभी अपने तई अफ़सरों के हवाले कर दूंगी," और अपना इरादा पूरा करने को फ़ौरन वहां से चल दी, क्योंकि वह इस बात का खयाल बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि