पृष्ठ:तुलसी की जीवन-भूमि.pdf/२०८

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. तुलसी की जीवन-यात्रा २०५ परंतु तुलसी से उसका पता पा लेना संभव नहीं दिखाई देता। निदान उसकी और अधिक जिज्ञासा नहीं। हाँ, जानने की उत्सुकता यह अवश्य है कि तुलसी का चाल- रामराजधानी पन' कहाँ और कैसे बीता। सो उनका आप ही यह सीधा सा कथन है- रामगुलाम तुही हनुमान गुसाई सुसाई सदा अनुकूलो । पाल्यौं हौं बाल ज्यों आखर दू पितुमातु ज्यौं मंगलमोद समूलो । बाहुँ की वेदन, बाँहपगार ! पुकारत आरत आनंदभूलो। श्रीरघुबीर निवारिए पीर, रहौं दरबार परौ लटि लूलो ॥ ३६ ।। [हनुमानबाहुक] तुलसी का पालन-पोपण जिस 'दरबार' में हुआ उसका उल्लेख हो गया। अब उसकी स्थिति का बोध होना चाहिए । सो भी विदित ही है तुलसी की इस वाणी से- जयति अंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत-विधु बिबुधकुल-कैरवानंदकारी । केसरी-चारु-लोचन चकोरफ-सुखद, लोकगन-सोकसंतापहारी॥ जयंति जय बालकपि-केलि-कौतुक उचित-चंडफरमंडल-ग्रासकर्ता । राहु-रवि-सक्र-पवि-गर्व-खर्वीकरन, सरन भयहरन, जयः भुवनमः ।। जयति रनधीर रघुवीर-हित देवमनि रुद्ग अवतार संसारपाता। विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आसिषाकार-वपुष विमल-गुन-बुद्धि-बारिधि बिधाता। जयति. सुग्रीव-सिच्छादि-रच्छन-निपुन, वालि-बलसालि बघ मुख्य हेतू । जलधि-लंघन-सिंह, सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर उत्पातकेतू ।। जयति भूनंदिनी-सोच-मोचन, विपिनदलन, घननादबस, बिगतसंका | लूमलीला - अनलज्वालमालाकुलित, होलिकाकरन - लंकेसलंका ।। जयति सौमित्ररघुनंदनानंदकर, रिच्छ कपि-कटफ-संघटविधाई। वद्ध-त्रारिधि सेतु अमरमंगलहेतु, . : ..मानुकुलकेतु-रनबिजयदाई ।। .