छप्तौदी
श्ष!
इस युद्ध में एक यह बात सी देखी गई कि यों ्याँ लबने-
बालों शा दुःख बढ़त, गया, तयों त्यों उसका अन्त भी नजदीक आता गया | साथ हो उय्नोंज्यों दुःखी की निर्दोषिता अविकाधिक
प्रकट होती गई, सयों तयों भी लड़ाई का अन्त निकट आते लगा।
निःशत्र और ऐैनेइस युद्ध में यह भी देखा कि ऐसेजिननिर्दोष, सावनों की आव-
थहिंसक युद्ध के लिए ऐन-बक पर जिन श्यक्षता होती हैये भी पनायास श्रांत्र होते चल्ते जाते हें । कितने
ही लय॑-सेवों ने, जिन्हें मेंआम तक भी नहीं जानता, अपने
भाए सहायता को । ऐसे सेवक अमर निख्वाय होते हैं।
अनिउत्ा पूर्वकभी वेअद्यय रूप से सेवा कर देतेहैं।देनदेवावो कोई उनका दिखाद रखता और ने कोई प्रमाए-पत्र हीउन्हें है। इनके ये अपू्य कार्य परमात्मा की खितानों में जमा ह्षेतें
रइते हैं।पर कई सेवक तो यह भी नहीं जानते । दक्तिणं भ्रक्रिका के भारतीय अपनी परीक्षा मेंउत्तीर्ण हो गये। इतदेंने अग्विलवैश किया भर ज्यों के त्योंशु& बाहर निकल आए |अब यद् आगे प्रकरण में देखेंगे कि लड़ाई के अन्त का भारउम किस परह हुआ।