पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/७५

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दक्तिण-अफीका का सत्याग्रह

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उनके दिल पर यह बाद अंकित करनी थी कि खतंत्र भारतीय

व्यापारी उन्हेंअपने आत्मीय सममते हैं।साथ ही उन व्यापारियों

के हृदय मेंभी हम इनके प्रति आदर उत्पन्न करना चाहते थे।

इतना फरते हुए भी काम्रेस के पास खर्च जाते एक बढ़ी भारी रकम इकट्ठी दो गयी थी । इस कोष से कांग्रेस के ज्िण जमोन खरोदी गयी, जिसकी आमदनी आजतक आ रही है।

मैंने जानवूमकर इतनी तफसोल्ल से बातें लिखी हैं।ऊपर

लिखी बातें बिना पढ़ेपाठक यह नहीं समझ सकते कि क्रिस

तरह सत्याग्रह बिल्कुल स्वाभाविक रीति से उत्पन्न हुआ ।

काग्रेस पर आपत्तियाँ भी उमरढ़ीं। सरकारी अधिकारियों ने आक्रमण भी किये, पर इन सब आपत्तियों को कांग्रेस नेकिस बद्दाद्री केसाथ पार किया, येसब जानने योग्य बातें मुमे

लाचारी के साथ छोदनी पढ़ रही हैं। पर एक बात कद्द देना

जरूरी है। जनता घत्युक्ति सेहमेशा बचती रहती । यद्द भी बराबर प्य॒त्त किया जाता कि बह अपनी गलतियों को दोहरावे नहीं । गोरों की द्षीतों में भोजो बातें सही रहती, बे फौरन स्वीकार कर त्षी जाती और हरएक अवसर का फायदा उठा

लिया जावा, जिसमें गोरों केसाथ रहकर भी भारतीय अपने राभिमान और स्वाधीनता की रक्षा कर सकते हों। हमारो इृशचत्न की जो-जो बातें बहोँ के अखबार स्वीकार कर सकते थे वेछुपायी जातो थीं, और आल्षेपों के उत्तर भी दिये जाते ये। किस प्रकार नेटात्ञ में 'नेटा इरिड्यन कांग्रेस! थी, उसी

प्रकार ट्रान्सवाल में भी भारतीय कुछ उद्योग कर रे थे ।

द्रन्सवात् की संस्था नेदाल से बिज्ञकुल्ल खतन्त्र थी। उसके ,

संगठन में भी छुछ फर्क था। पर मैंउसके सूह्म भेद यहाँ देना

नहीं चाहता । केप टाउन मेंभी ऐसी ही एक सस्या थी। उसकी