पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१५४

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१६३ दिल-ए-नादाँ, तुझे हुआ क्या है आख़िर इस दर्द की दवा क्या है हम हैं मुश्ताक और वह बेज़ार या इलाही, यह माजरा क्या है मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँ काश, पूछो, कि मुद्दा क्या है लत 'अः जबकि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद फिर यह हँगामः अय ख़ुदा क्या है यह परी चेहः लोग कैसे हैं ग़मजः-ो-'विश्वः-यो-अदा क्या है शिकन-ए-जुल्फ-ए-'अँबरीं क्यों है निगह-ए-चश्म-ए-सुर्मः सा क्या है सब्ज़:-ओ-गुल कहाँ से आये हैं अब क्या चीज़ है, हवा क्या है