पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/१६४

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वह गुल जिस गुलसिताँ में जल्वः फ़रमाई करे, गालिब चिटकना [चः-ए-गुल का, सदा-ए-ख़न्दः-ए-दिल है पा ब दामन हो रहा हूँ, बसकि मैं सहा नवर्द खार-ए-पा हैं, जौहर-ए-आईनः-ए-जानू मुझे देखना हालत मिरे दिल की, हमाग़ोशी के वक्त है निगाह-ए-आश्ना, तेरा सर-ए-हर मू, मुझे हूँ सरापा साज-ए-अाहँग-ए-शिकायत, कुछ न पूछ है यही बेहतर, कि लोगों में न छेड़े तू मुझे जिस बड़म में, तू नाज़ से, गुफ़्तार में आवे जाँ, काल्बुद -ए-सूरत-ए-दीवार में आवे साये की तरह साथ फिरें सर्व-प्रो-सनोबर तू इस क़द-ए-दिलकश से, जो गुलज़ार में आवे तब नाज-ए-गिराँ मायगि-ए-अश्क बजा है जब लख़्त-ए-जिगर दीदः- ए-टूंबार में आवे