बहस है जो और के अर्थ मे प्रयुक्त होता है। जैसे "गुल और बुलबुल" की जगह गुल-ओ-बुलबुल।
इजाफत एक शब्द से दूसरे शब्द का सम्बन्ध प्रकट करती है। इजाफत की 'अलामत ज़ेर से लिखी जाती है जो अक्षर के नीचे लगाया जाता है और उसके प्रयोग से गुल का रँग "रँग-ए-गुल" और ग़ालिब का दीवान "दीवान-ए-ग़ालिब" हो जाता है।
नागरी में 'अत्फ़ और इजाफत के लिखने के जो तरीके प्रचलित हैं, वह दोषपूर्ण है। उनसे शब्दों का मूल-रूप बिगड़ जाता है और कभी कभी अर्थ का अनर्थ हो जाने की आशंका होती है। जैसे साधारणतः "गुल और बुलबुल" को लिखने के लिए "गुलो बुलबुल" लिखा जाता है या गुल व बुलबुल। एक में गुल का रूप बिगड़ गया है और दूसरे में उच्चारण की अशुद्धि की सम्भावना है।
इस दीवान में 'अत्फ के वाव (,) के लिए -ओ- की 'अलामत अपनाई गई है और "गुल-ओ-बुलबुल" लिखा गया है।
इजाफ़त के लिए -ए- की 'अलामत अपनाई गई है। और दीवाने ग़ालिब के बजाय जिसका अर्थ पागल ग़ालिब भी हो सकता है, "दीवान-ए-गालिब" लिखा गया है। इस तरह शब्द का मूल रूप बाकी रहता है और इजाफत का जेर ये (ݻ) में नहीं बदलता।
उर्दू के तीन अक्षरों के लिए भी नये चिह्नों से काम लिया गया है। एक श़े (ڌ) दूसरे 'अैन (ع) और तीसरे छोटी हे (ه)
जिस अक्षर को उर्दू में (ڈ) लिखते है उसकी आवाज हिन्दी में मौजूद नहीं है यह ज़ और श के बीच की आवाज है। इसलिए श के नीचे बिन्दी लगादी गई है (श़)
'अैन (ع) की आवाज उर्दू में अलिफ़ (ݴ) की आवाज से मिल गई है इसलिए नागरी लिपि में साधारणतः दोनों अक्षरों को एक ही तरह लिखा जाता है। जिन शब्दों के आरम्भ में 'अैन आता है उन में कोई बाधा नहीं आती। जैसे "आशिक" और "औरत"। लेकिन जिन शब्दों के अन्त में या बीच में 'अैन आता है वहाँ उसकी अलग आवाज का प्रकट करना आवश्यक हो जाता है। कभी कभी 'अैन अलिफ़ के साथ भी आता है। जैसे 'आदत या विदा'अ। इस जगह लिखावट में 'अैन को अलिफ़ से अलग करने की जरूरत पड़ती है। यही कारण है कि इस दीवान में अलिफ़ (ݴ) के लिए (अ) और 'अैन (ع) के लिए ('अ) की 'अलामत प्रयोग की गई है।
'अैन दूसरे अक्षरों की तरह गतिवान भी आता है और गतिहीन भी। गतिवान 'अैन के लिखने में कोई कठिनाई नहीं आती और उसे हर जगह