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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/४९

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जख़्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया; रवा न हुआ

रहज़नी है, कि दिल सितानी है
ले के दिल, दिलसिताँ रवाना हुआ

कुछ तो पढ़िये, कि लोग कहते हैं
आज ग़ालिब ग़ज़लसरा न हुआ

२८


गिला है शौक़ को, दिल में भी तंगि-ए-जा का
गुहर में मह्व हुआ इज्त़िराब दरिया का

यह जानता हूँ, कि तू और पासुख़-ए-मक्तूब
मगर, सितम ज़द: हूँ, ज़ौक़-ए-ख़ामःफरसा का

हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ाँ है, बहार अगर है यही
दवाम कुल्फ़त-ए-ख़ातिर है 'त्रैश दुनिया का

ग़म-ए-फ़िराक़ में, तकलीफ-ए-सैर-ए-बाग़ न दो
मुझे दिमाग़ नहीं ख़न्दःहा-ए-बेजा का

हनोज़ महरमि-ए-हुस्न को तरसता हूँ
करे है हर बुन-ए-मू काम चश्म-ए-बीना का