पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/६२

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४५ सुरमः-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ, मिरी कीमत यह है कि रहे चश्म-ए-ख़रीदार प एहसाँ मेरा रुख़सत-ए-नालः मुझे दे, कि मबादा जालिम तेरे चेहरे से हो जाहिर, ग़म-ए-पिन्हाँ मेरा ४६ गाफ़िल ब वहम-ए-नाज ख़ुद अारा है, वर्नः याँ बेशान.-ए-सबा नहीं तुः गियाह का बज़्म-ए-क़दह से 'अश-ए-तमन्ना न रख, कि रँग सैद-ए-जिदाम जस्त: है, इस दाम गाह का रहमत अगर क़ुबूल करे, क्या ब'श्रीद है शर्मिन्दगी से 'गुज्र न करना गुनाह का मक्तल को किस निशात से जाता हूँ मैं, कि है पुर गुल, खयाल-ए- ज़ख़्म से, दामन निगाह का जाँ दर हवा-ए-यक निगह-ए-गर्म है, असद परवानः है वकील, तिरे दाद ख्वाह का