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पृष्ठ:दीवान-ए-ग़ालिब.djvu/७८

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लेता, न अगर दिल तुम्हें देता, कोई दम चैन
करता, जो न मरता कोई दिन, आह-ओ-फुग़ाँ और

पाते नहीं जब राह, तो चढ़ जाते हैं नाले
रुकती है मिरी तब'अ, तो होती है रवाँ और

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं, कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयाँ और

६४


सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईनः है, सामान-ए-रँग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर जा माँदः का, पाता है रँग आख़िर
 
न की सामान-ए-'अश-ओ-जाह ने तद्बीर वह्शत की
हुआ जाम-ए-ज़मर्रुद भी मुझे, दाग़-ए-पलँग आख़िर

६५


जुनूँ की दस्तगीरी किस से हो, गर हो न 'अरियानी
गरीबाँ चाक का हक़ हो गया है, मेरी गर्दन पर

बरँग-ए-काग़ज़-ए-आतश जदः नैरँग-ए-बेताबी
हज़ार आईनः दिल बाँधे है बाल-ए-यक तपीदन पर