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विषय-प्रवेश

[ १ ]

विदेशी शासन की पराधीनता राष्ट्रों के पतन का एक महान कारण है।

—प्रो॰ ई॰ ए॰ रॉस

राष्ट्रीय दृष्टि-कोण से कहा जाय तो एक जाति के ऊपर दूसरी जाति की ग़ुलामी से बढ़कर और कोई शाप नहीं हो सकता। लूट-मार करने और देश जीतने के इरादे से जो राजा अपना दल लेकर निकल पड़ता है उसका प्रभाव जिस देश को रौंदते हुए वह जाता है उसके लिए नाशकारी होता है। पर यदि उसकी तुलना किसी देश की स्वाधीनता की उस क्षति से की जाय जो उसकी जातियों को पूर्णरूप से पराधीन करके उस पर विदेशी सेना की सङ्गीनों का भय दिखाकर शासन करने से क्रमशः होती है, तो वह कुछ भी न ठहरेगा। आक्रमणकारी तूफ़ान की तरह आता है, लूट-मार करता है, उखाड़-पछाड़ करता है और बात की बात में सारे देश को तहस-नहस कर देता है। किन्तु या तो वह अपने लूट के माल के साथ चला जाता है या उसी देश में बस जाता है और उसके प्राचीन निवासियों में मिल जाता है। पहले प्रकार के मनुष्यों में सिकन्दर, महमूद गज़नी, तैमूर, नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली जैसे आक्रमणकारी थे। दूसरे प्रकार के मनुष्यों में वे लोग थे जो सिथियनों और हूणों को भारतवर्ष में ले आये, यहीं बस गये और भारतीय राष्ट्र के एक अङ्ग बन गये या गोरी और बाबर जैसे शासक थे जिन्होंने यहाँ की भूमि पर अपने राज्यवंशों की गहरी नींव डाली।