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पाँचवाँ अध्याय
एक महान् वकील

भारतवर्ष में जनता की निजी संस्थाओं ने प्रारम्भिक तथा उच्च कोटि की और कला-कौशल-सम्बन्धी शिक्षाओं के लिए बड़ा उद्योग किया है और कर रही हैं। स्वर्गीय श्रीयुत जे॰ एन॰ टाटा ने उच्च कोटि की वैज्ञानिक शिक्षा के लिए अपने विपुल धन का एक ख़ासा भाग व्यय किया था। बंगलौर के वैज्ञानिक विद्यालय का अस्तित्व उन्हीं की बदौलत है। बोस बाबू की प्रयोग-शाला, कलकत्ते का प्रौद्योगिक विद्यालय (जिसके साथ प्रसिद्ध रसायन-वेत्ता डाक्टर पी॰ सी॰ राय का सम्बन्ध है) राष्ट्रीय चिकित्सा-विद्यालय पूर्णरूप से या विशेषरूप से भारतीयों के निजी परिश्रम के ही फल हैं। सरकारी विश्वविद्यालय भी सर गुरुदास बैनर्जी के समान भारतीयों के दान के बहुत कुछ कृतज्ञ हैं। काशी के हिन्दू-विश्वविद्यालय में उच्च कोटि की साहित्यिक शिक्षा की ही व्यवस्था नहीं है बल्कि उसमें एक इंजीनियरिंग कालिज भी है। परन्तु मिस मेयो यह सिद्ध करना चाहती है कि शिक्षा-विस्तार के लिए स्वयं भारतीय कुछ नहीं कर रहे हैं। वह भारतीय राष्ट्र-वादियों को ब्रिटिश सरकार की कल्पित असावधानी की समालोचना करने का अपराधी ठहराती है। शिक्षित भारतीयों के विरुद्ध उसका अपराध लगाना सर्वदा की भाँति, एक अज्ञात बङ्गाली वकील के साथ जिसने वकालत करके खूब द्रव्योपार्जन किया पर अपने गाँव की शिक्षा या स्वच्छता पर कोई ध्यान नहीं दिया, उसकी बात-चीत पर निर्भर है। मैंने अपनी 'भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या' नामक पुस्तक के भूमिकाभाग में उस समय (१९१८) तक इस सम्बन्ध में व्यक्तिगत उद्योगों द्वारा जो कुछ किया गया था उसका संक्षिप्त विवरण दिया था। परन्तु जब सब कुछ कहा जा चुका है तब इस बात के अस्वीकार करने से कोई लाभ नहीं कि शिक्षा की व्यवस्था करना सर्वप्रथम और मुख्य रूप से सरकार का ही काम है।