पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४९
द्वितीय खण्ड।



तिलोत्तमा चुप रही और उसका हृदय काँपने लगा। फिर बिमला ने पूछा 'तू आज यह अपना वेष न त्यागेगी!'

तिलोत्तमा ने कहा 'नहीं।'

बि॰। नाचने गाने न जायगी?

ति॰। नहीं।

बि॰। तो क्या तू बच जायगी?

तिलोत्तमा रोने लगी। बिमला ने कहा 'स्थिर होकर सुन, मैंने तेरे छूटने के निमित्त उपाय किया है।'

तिलोत्तमा आग्रह से बिमला के मुँह की ओर देखती रही कि उसने उसमान वाली अंगूठी निकाल कर उसके हाथ में दिया और बोली 'इस अंगूठी को अपने पास रख, नाच घर में न जाना, आधी रात के इधर तो यह उत्सव समाप्त नहीं होगा तब तक मैं पठान को वहलाये रहूँगी मैं तेरी माता हूँ यह जान कर वह तुझको मेरे सामने न बुलावेगा। आधी रात को महल के द्वार पर जाना वहाँ एक मनुष्य तुझको ऐसीही अंगूठी दिखावेगा। निशंक तू उसके सङ्ग चली जाना, जहाँ कहेगी वहाँ वह तुझको पहुँचाय देगा। तू उससे कहना कि मुझको अभिराम स्वामी के कुटी में ले चलो।

तिलोत्तमा को सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ और आनंद भी हुआ। थोड़ी देर कुछ कह न सकी फिर बोली 'यह तू क्या कहती है यह अंगूठी तुझको किसने दिया?'

बिमला ने कहा 'यह भारी कथा है फिर कभी अवकाश में तुझसे कहूँगी। अभी मैंने जैसा कहा है वैसाही करना।'

तिलोत्तमा ने कहा 'तेरी क्या दशा होगी तू कैसे बाहर आवेगी?'

बिमला ने कहा 'मेरी चिंता न कर मैं कल प्रात को आकर