पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

[९]

बतलाया? उसने उत्तर दिया कि इसका समाचार मैं तुम्हारे पिता के सामने कहूंगी अब यह क्या कोलाहल होने लगा?

नवीना ने कहा जान पड़ता है कि राजपुत्र को ढूंढ़ने के लिये कोई सेना आई है। जहां युवराज आप प्रस्तुत हैं वहां तू चिन्ता किस बात की करती है?

इधर राजपुत्र के सवार डोली कहार लेनेको गए उधर वही डोली कहार और रक्षक जो उन स्त्रियों को लेआए थे आन पहुंचे। दूर से युवराज ने उनको देखकर मन्दिर में जा सहचरी से कहा “कि कई सिपाही डोली कहार लिये आते हैं बाहर आकर देखो तो क्या वे तुम्हारे ही आदमी है”? विमला ने बाहर आकर देखातो वही आदमी थे। तब युवराजने कहा कि अब हमारा यहां ठहरना उचित नहीं है यदि ये लोग हमको इस स्थान पर देखलेंगे तो अच्छा न होगा, लो अब मैं जाता हूँ और महादेवजी से यही विनती करताहूँ कि तुम लोग कुशल पूर्वक अपने घर पहुंच जाओ और तुमलोगों से यह निवेदन है कि हमारे मिलने का समाचार इस सप्ताह में किसी से न कहना और न हमको भूल जाना, यह लो अपना स्मारक चिन्ह यह एक सामान्य वस्तु तुम को देता हूं और मैंने जो तुम्हारी सखी का पता नहीं पाया यही एक चिन्ह अपने पास रक्खूंगा यह कह कर और अपने गले से मोती की माला निकाल विमला के गले में डाल दिया। विमला ने इस अमूल्य मणिमाला को पहिन युवराज को प्रणाम करके कहा महाराज मैंने जो आप को पता नहीं बताया इस्से आप अप्रसन्न न हो इसका एक विशेष कारण है परन्तु यदि आपको इसकी बड़ी इच्छा हो तो यह बतलाइये कि आज के पन्द्रहवें दिन आपसे कहां भेंट हो सकती है।