पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/२

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प्रिय पाठक गण!

यह मेरा दूसरा अनुवादित ग्रंथ है परन्तु इसके संशोधन में यथोचित अवकाश न मिलने के कारण इसमें विशेष रोचकता नहीं आई तथापि आप लोगों को इसके अवलोकन से यदि चित्त प्रसन्न न होगा तो समय हानि की ग्लानि भी न होगी।

इसके अनुवाद का अनुष्ठान श्रीयुत बाबू रामकाली चौधरी रायबहादुर, पश्चिमोत्तर देश के सबार्डिनेट जज के योग्य पुत्र बाबू रामचन्द्र चौधरी की आकांक्षा से किया गया। यह ग्रन्थ दो खण्डों में है, जब कि प्रथम खण्ड “कविबचनसुधा” में छप रहा था मेरे मित्र पण्डित रामनारायण प्रभाकर ने इसकी मनोहरता देखकर मुझको ग्रन्थ कर्ता से सहायता मांगने की सम्मति दी और मैंने एक पत्र श्रीबाबू बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के चरण कमल में प्रेरण किया परन्तु उसका फल यह हुआ कि उलटे लेने के देने पड़े। “नमाज़ को गये थे रोज़ा गले पड़ा”। बाबू साहेब प्रथम तो बड़ेही