पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/३१

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का मन्दिर सम्बन्धी संपूर्ण समचार कह सुनाया और कहा कि आज चौदह दिन हो चुका कल पूरा पन्द्रह हो जायेगा। अभिराम स्वामी से पूछा फिर क्या इच्छा है?

बिमला ने कहा मैं तो यही पूछने को तुम्हारे पास आई हूं कि अब क्या करना उचित है।

स्वामी ने कहा कि यदि हमसे पूछती हो तो अब इस विषय को चित्त से भुलादो।

बिमला का मन उदास होगया तब अभिराम स्वामी ने पूछा 'क्यों कैसी उदास होगई?

बिमला ने कहा कि तिलोत्तमा की क्या दशा होगी!

अभिराम स्वामी ने आश्चर्य से पूछा 'क्यों, क्या तिलोत्तमा को विशेष प्रेम है?'

बिमला चुप रही और फिर बोली "मैं तुमसे क्या कहूं मैं आज चौदह दिन से उसको बिलक्षणगति देखती हूं, मुझको तो जान पड़ता है कि तिलोत्तमा दशा चित्त से आसक्त है।

परमहंस ने मुस्किरा कर कहा स्त्रियों को ऐसाही जान पड़ता है। हे बिमला! तू बहुत चिन्ता न कर अभी तिलोत्तमा लड़की है नये मनुष्य को देखने से कुछ प्रेम होही जाता है उस बात की चर्चा उड़ा दो वह आप भूल जायगी।

बिमला ने कहा 'नहीं महराज ऐसे लक्षण नहीं है। पन्द्रह दिन में उसका स्वभाव पलट गया। वह अब हमसे क्या और स्त्रियों से पूर्ववत हंसती बोलती नहीं, किसी से बात भी नहीं करती। पुस्तकैं उसकी सब पर्यक के नीचे पड़ी है, पौधे उसके पानी बिना सुखे जाते हैं पक्षियों की ओर अब उसकी रुचि नहीं है। खाना पीना सब छूट गया है रात