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पृष्ठ:दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग.djvu/३४

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इस प्रकार जब अनेक पठान सेना मारी गई तब तो वे बहुत व्याकुल हुए और राजपूतों से संमुख संग्राम करने की टोह में फिरने लगे परन्तु जगतसिंह का पता काहे को लगता था।

जगतसिंह अपनी पांचो सहस्त्र सेना को एकत्र नहीं रखते थे कहीं सौ कहीं दो सौ इस प्रकार उनको भिन्न २ स्थानों में ठहरा दिया था और सर्वदा एक स्थान में भी नहीं रहते थे, मारा कूटा और चल दिया। कतलूखां के पास नित्य यही सम्वाद आता था कि आज चार सौ मरे कल हज़ार मरे, अर्थात सोते बैठते सर्व काल में अमङ्गल समाचार मिलता था। अन्त को लूट पाट सब बन्द हो गई और सेना सब दुर्ग में जा छिपी, आहारादि की भी कठिनता होने लगी। इस उत्तम शासन सम्वाद को सुनकर महाराज मानसिंह ने पुत्र को यह पत्र लिखा।

"कुल तिलक! मैंने जाना कि तू पठान वंश को निर्मूल करेगा अतएव यह दश सहस्र सेना और तुम्हारी सहायता के निमित्त भेजता हूं।"

कुमार ने उत्तर लिखा।

"महाराज यदि आपने और सेना भेजी तो अति उत्तम है नहीं तो आपके चरणों के प्रभाव से इसी पांच सहस्र सेना से मैं अपनी प्रतिज्ञा पालन करता" और सेना लेकर अपूर्व वीरता प्रकाश करने लगे।

अब देखना चाहिये कि शैलेश्वर के मन्दिर में जिस सुन्दरी से साक्षात हुआ था उसका ध्यान जगतसिंह को कुछ रहा या नहीं।