सेना ने पटना पर अधिकार कर लिया; परन्तु नवाब ने पुनः पटना छीन लिया । अन्य नगरों की भी छीना झपटी हुई, जिससे कितने ही अंगरेज मीरक़ासिम के हाथ पड़ गये। ये अंगरेज पटना में कैद किये गये। इसी बीच में मीरक़ासिम को कम्पनी से दो बड़े बड़े युद्धों में हारना पड़ा। वह इस हार से चिढ़ गया। और क्रोध में आकर उसने सब अंगरेज कैदियों को मार डालने का हुक्म दे दिया। बाल्टर रेन्हार्ट नाम का एक स्वीटजरलैंड-निवासी मीरक़ासिम का नौकर था। इसी मनुष्य ने मीरकासिम की आज्ञा से बड़ी निर्दयता के साथ लगभग ६० अंगरेजों की हत्या की।
१८५७ में दूसरी घटना हुई। पटना-नगर से लगी हुई दानापुर की छावनो है । दानापुर में उस समय तीन देशी फौजें थीं। १८५७ में सिपाहो-विद्रोह हुआ। इस डरसे कि कहीं दानापुर की देसी फौजे बिप्लव-कारियों से न मिल जायें;अंगरेज़-अफसरों ने यह निश्चय किया कि उनसे हथियार छीन लिये जायें। फौजसे हथियार मांगने की बात चलने पर वह बिगड़ गई और अन्य विप्लवकारियों से मिल गई। इसका परिणाम बुरा हुआ।
बहुत दिनों बाद, इस वर्ष, फिर पटना के भाग्य ने करवट बदली है। सम्राट् पञ्चम चार्ज की आज्ञा से बङ्गाल से अलग होकर विहार एक स्वतन्त्र प्रान्त बना है और उड़ीसा तथा छोटा नागपुर भी उसीमें जोड़ दिये गये हैं। पटना अब इस नये प्रान्त की राजधानी है।
वर्तमान पटना एक बड़ा लम्बा चौड़ा नगर है । बांकीपुर के मिला देने से इसकी लम्बाई लगभग चार कोस के हो जाती है। यह नगर