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मुरशिदाबादक

अपने हाथ में ले लिया। निजामत अदालत भी कलकत्ते चली गई। महाराज नन्दकुमार पर एक जाली दस्तावेज़ बनाने का इलज़ाम लगा हेस्टिज ने उन्हें फांसी दे दी।

इसके आगे मुरशिदाबाद के इतिहास में कोई विशेष महत्व की बात नहीं है। इसलिए अब हम मुरशिदाबाद की दो चार ऐतिहासिक इमारतों का ज़िक्र करते हैं।

किला निजामत भागीरथी के किनारे है। उसीके भीतर महल, इमामबाड, रहने के मकान, घण्टा घर, बङ्गले और कई मसजिदें हैं। किले में कई फाटक हैं। उनमें से दक्षिण फाटक सबसे अच्छा है। खास खास फाटकों के नीचे से अम्वारी समेत हाथी निकल सकता है। इन फाटकों के ऊपर नौबतखाने हैं, जहां सुबह, शाम और आधी रात को नौबत बजा करती है ।

मुरशिदाबाद में जो महल है उसका नाम बड़ी कोठी या हजार द्वारी है। वही मुरशिदाबाद की मशहूर इमारत है। उसमें बहुत सी चीजें देखने लायक है। यह इमारत ४२४ फुट लम्बी, २०० फुट चौड़ी और ८० फुट ऊँची है। नब्बाब नाज़िम हुमायूं जाहने इसकी नींव १८२९ ईसवी में, डाली । इसके बनने में ८ वर्ष लगे। कर्नल मेकल्यूड की निगरानी में यह बनी, पर बनाया इसे हिन्दुस्तानी ही कारीगरों ने । यह बड़ी ही सुन्दर इमारत है और तीन खण्डों में बनी हुई है। नीचे के खण्ड में तोशकखाना, सिलहखाना और नहाफिज़खाना है। इनके सिवा कई एक दफ्तर भी हैं। दूसरे खण्ड में दरबार का कमग,मुलाक़ात का कमरा,खाना खाने का कमरा, सोने का कमरा,