दिया है। ज्ञानसी में,इस समय,यह मिशन रुका पड़ा है। इधर इसे लासा की तरफ़ आगे बढ़ने की आज्ञा मिल चुकी है, उधर तिबत वाले इसका अबरोध करते है। मामला टेढ़ा है। जान पड़ता है कि वह मिशन शीघ्र ही एक भयङ्कर चढ़ाई का रूप धारण करेगा।
इस मिशन के सम्बन्ध में इस समय पारलियामेंट में खूब वाद- विवाद हो रहा है। आसाम के भूतपूर्व चोफ़ कमिश्नर काटन साहब इस विवाद में अग्रणी हैं। वे इस मिशन का भेजा जाना प्रसन्द नहीं करते । इस मिशन के भेजे जाने के कई कारण बतलाये जाते हैं । उन में से कुछ कारण एक दूसरे के विरोधी भी हैं। पहला कारण यह बतलाया जाता है कि तिबत वालों ने सन्धिपत्र के नियमों की पाबन्दा नहीं की ; दूसरा यह कि मिशन के अफसरों से मिल कर झगड़े की बातों को तै करने के लिए तिबतवालों ने अपना कोई अफ़सर नहीं भेजा ; तीसरा यह कि तिबत वाले भीतर ही भीतर रूस से मिले हैं;चौथा यह कि तिबत की सीमा हिन्दुस्तान की सीमा से मिली हुई होने के कारण तिबत में अँगरेज़ी गवर्नमेंट के स्वत्वों को रक्षा आवश्यक है। परन्तु काटन आदि विचक्षण पुरुषों का मत है कि ये कारण बहुत ही निर्बल हैं ; सन्धि पत्र के नियमों का पालन होना और न होना बराबर है ; तिबत और भारतवर्ष का व्यापार बहुत कम है ; इस मिशन का भेजा जाना रूस और चीन दोनों राज्यों को पसन्द नहीं।
तिबत के विषय में एक नई बात सुन पड़ी है। वह यह है। कोई २० वर्ष हुए घोमंग लोबजङ्घ नामक एक आदमी मङ्गोलिया से लासा को आया। वहां वह दाबङ्ग के मठ में वेदान्त का अध्यापक नियत