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दृश्य-दर्शन

बोलते हैं। उनके कपड़े-लत्ते,चाल-ठाल,रीति-रवाज और शकल- सूरत तिबत वालों से मिलती है । नेपाल के बीच में,पश्चिम की तरफ़, कम ऊँची पहाड़ियों पर मगर और अधिक ऊँची पहाड़ियों पर गुरूँग जाति के लोग रहते हैं । नेवार लोग खास नेपाल की दरी में,और किराती और लिम्बू नेपाल के पूर्व रहते हैं। लेपचा जाति के लोग सिकम के पास की पहाड़ियों पर रहते हैं। इन सब की गिनती मंगोलियन शाखा के आदमियों में हैं, अर्थात् मंगोलिया में रहने वालों की शकल-सूरत जैसी होती है उससे इन लोगों की शकल-सूरत मिलती है। इनके सिवा नेपाल में एक और जाति के आदमी रहते हैं। वे पार्वती या पर्वतिया कहलाते हैं। तेरहवीं सदी में हिन्दुस्तान से जो लोग भाग कर नेपाल चले गये थे। उनके और पहाड़ी स्त्रियों के समागम से इन लोगों की उत्पत्ति हुई है। मगर,गुरूंग और पर्वतिया जाति वालों के समूह का नाम गोर्खा या गोर्खाली है। बङ्गाल के भूतपूर्व लफ्टिनेंट गवर्नर,और बम्बई के गवर्नर, सर रिचर्ड टेम्पल का यह मत है। उन्होंने एक किताब लिखी है। उसी में आपने अपना यह मत प्रकाशित किया है। नेपाल में काठमण्डू से ४० मील पश्चिम की तरफ़ गोर्खा नाम का एक शहर है। उसी के नाम पर गोर्खा लोगों का नाम पड़ा है। नेपाल की दरी में जो लोग रहते हैं,उनमें नेवार जाति वालों की संख्या सब से अधिक है। नेपाल में पहले इन्हीं लोगों का प्रभुत्व था। ७६८ ईसवी के लगभग गोर्खा लोगों ने नेपाल में अपना राज्य स्थापित किया। चपांग, कुसूदा और अवालिया लोग भी नेपाल के भीतरी जङ्गलों और तराइयों में रहते हैं।