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दृश्य-दर्शन


देहली में लाया। फीरोजाबाद में भी अशोक का एक स्तम्भ है। इन स्तम्भों पर १३१२, १३५९ और १५२४ ईसवी के कई छोटे छोटे लेख हैं। फीरोज़ाबाद के स्तम्भ (लाट) पर, पाली भाषा में, अशोक के समय का भी एक लेख है। इस लाटकी उंचाई ४२ फुट है। इस का व्यास १० फुट १० इंच है।

कुतुबमीनार देहली के अजमेरी दरवाज़े से ५१ मील है। वह उसी स्थान पर है जहां शायद प्राचीन देहली थी। उसीके पास पृथ्वीराज के किले के भी चिन्ह हैं। वह २४० फुट ६ इञ्च ऊंचा है। उसके नीचे का व्यास ४७ फुट है। वह पांच खण्डों में बना हुआ है। देहली में यह मीनार एक अनोखी ऐतिहासिक वस्तु है। उसीके पास कुतुबुल-इसलाम नाम की प्राचीन मसजिद है। उसे ११९१ ईसवी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। इसके एक दरवाज़े पर, अरबी में, एक लेख खुदा हुआ है, जिस में लिखा है कि २७ मन्दिरों को तोड़ कर उन्हींके ईंट-पत्थर इत्यादि से यह मसजिद बनवाई गई है।

इसी मसजिद के पास लोहे का एक प्राचीन स्तम्भ है। वह बिलकुल ठोस लोहे का है। उसका व्यास १६ इञ्च और उंचाई २३ फुट ८ इञ्च है। उसपर एक लेख, संस्कृत में, खुदा हुआ है। उसमें लिखा है कि यह राजा धव का यशोबाहु है। इस राजा ने सिन्धु-नदी के पास रहने वाली वाल्हीक जाति पर बड़ी विजय पाई थी। उसीके स्मरण में उसने यह स्तम्भ खड़ा किया था। वह ईसा की चौथी शताब्दी का बना हुआ जान पड़ता है। परन्तु किसी किसी का मत है कि राजा अनङ्गपाल ने इस स्तम्भ को बनवाया था। अनङ्गपाल