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दृश्य-दर्शन


पले हुए हैं। जिसे जयपुर जाने का मौका मिले उसे बाग़ और अजायब घर ज़रूर देखना चाहिए।

जयपुर में विद्या और कलाकौशल की रक्षा का भी उत्तम प्रबन्ध है। वहां एक "स्कूल आव आर्ट्स" है। उसमें अनेक प्रकार के शिल्पकार्य्य सिखलाये जाते हैं। वहां कपड़े बुनना, "यनेमल" के काम करना आदि कितने ही प्रकार के उपयोगी उद्योग-धन्धे सिखाने का प्रबन्ध है। हवामहल के सामने महाराजा का कालेज है। वह १८४४ ईसवी में बना था। उसमें एम° ए° तक की पढ़ाई होती है। संस्कृत-शिक्षा का भी वहां प्रबन्ध है। जयपुर में स्त्री शिक्षा का भी प्रचार है। लड़कियों के लिए एक अच्छा स्कूल है। जयपुर के वर्त्तमान नरेश महाराजा सर सवाई माधवसिंहजी जी° सी° एस° आई° हैं। १८८२ ईसवी में आपको राजासन प्राप्त हुआ था। विद्या, विज्ञान और कलाकौशल की उन्नति की तरफ़ आपका हमेशा ध्यान रहता है। आप अपनी प्रजा के सुख के लिए नये नये सुधार करने में हमेशा यत्नवान् रहते हैं। आपका राज्य-विस्तार थोड़ा नहीं। योरप के बेलजियम देश से भी कुछ बड़ा है। आप ४ हजार सवार, १६ हजार पैदल फौज और २८१ तोपें रखते हैं। राजेश्वर सप्तम एड्रवर्ड के तिलकोत्सव के समय आप हिन्दू-ठाठ से विलायत पधारे थे। आपने इस देश के दुर्भिक्ष-पीड़ितों की सहायता के लिए अकालफण्ड में कई लाख रुपये दिये हैं। (फरवरी १९०८)