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ग्वालियर


प्रभुता फैलाई। तोरामन सूर्यवंशी कछवाहा था। उसका पुत्र सूर्यसेन हुआ। २७५ ईसवी में उसीने ग्वालियर बसाया। सूर्यसेन कुष्ठ रोग से पीड़ित था। ग्वालियर के पास एक पर्वत था। उसका नाम था गोपाचल अथवा गोपगिरि। उस पर ग्वालप नाम के एक महात्मा रहते थे। सूर्यसेन शिकार खेलता हुआ गोपाचल पर आया और महात्मा ग्वालप के दर्शन किये। उस महात्मा ने अपने कमण्डलु से एक चुल्ल भर जल सूर्यसेन को पीने के लिए दिया। उसको पीने से सूर्यसेन का कुष्ठ जाता रहा। अतएव उसने वहां पर एक किला बनवाया और उसका नाम ग्वालियावर रक्खा। तब से वह वहीं रहने लगा। यही ग्वालियावर या गोपगिरि धीरे-धीरे ग्वालियर हो गया। पुरानी बातों के ज्ञानी ऐसा ही कहते हैं; झूठ सच की राम जानें। महात्मा ग्वालप ने इस राजा का नाम बदल कर शोभनपाल रक्खा और कहा कि जब तक इस वंश के राजा पाल कहलावेंगे तब तक उनका राज्य बना रहेगा। इस वंश के सब मिला कर ८३ राजे हुए। पर चौरासिवें राजा का नाम तेजकर हुआ; तेजपाल न हुआ। इससे यह वंश राज्य भ्रष्ट हो गया?

ग्वालियर का राज्य कछवाहा राजों के हाथ से निकल जाने पर परिहारों का उसपर अधिकार हुआ। इस वंश के ७ राजे हुए। १०३ वर्ष तक इस वंश ने राज्य किया। इस वंश के अन्तिम राजा सारदेव के समय में अल्तमश ने ग्वालियर पर चढ़ाई की और १२३२ ईसवी में उसने परिहारों को वहां से निकाल दिया। इस विजय को वार्ता को अलतमश ने क़िले के एक फाटक पर खुदवा दिया। बाबर