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ग्वालियर



हथियापौर, अर्थात् हाथी-दरवाजा, मानसिंह ने बनवाया था। वह उसके महल से मिला हुआ है। यहीं पर पूर्वोल्लिखित हाथी की एक मूर्ति थी।

इस किले में उत्तर पश्चिम की तरफ़ तीन फाटक हैं और दक्षिण- पश्चिम की तरफ़ आने जाने का जो रास्ता है उसमें पांच । इन पांचों में से तीन फाटकों को जनरल व्हाइट ने तोड़ डाला था।

ग्वालियर के किले के भीतर पानी का बड़ा सुकाल है। उसमें अनेक कुर्वे,तालाब और कुण्ड हैं । इसी कारण,उत्तरी हिन्दुस्तान में वह बहुत ही दृढ़ और अप्रवेश्य किला समझा जाता है। उसके भीतर सूर्य-कुण्ड सबसे पुराना है। वह २७५ ईसवी के लगभग बना था। वह ३५० फुट लम्बा और १८० फुट चौड़ा है। वह गहरा भी खूबvहै। उसके सिवा तिकोनिया-तालाब,जौहर-तालाब, सास-बहू का तालाब,गङ्गोला-तालाब और धोबी-तालाब आदि और भी कई तालाब हैं और सब बड़े बड़े हैं । जब अल्तमश ने ग्वालियर पर कब्जा किया था तब वहां की राजपूत स्त्रियाँ जौहर करके जल मरी थीं। जौहर तालाब उसीका स्मरण दिलाता है और है भी उसी जगह जहां जौहर नामी स्त्रीमेध यज्ञ हुआ था।

ग्वालियर के किले में ६ पुराने महल हैं। उनमें से गूजरीमहल का जिक्र ऊपर आ चुका है। दूसरे का नाम मान-मन्दिर है । वह ग्वालियर के प्रसिद्ध राजा मानसिंह का महल है। वह १४८६–१५१६ के करीब बना था। १८८१ में उसकी मरम्मत की गई है। उसका नाम चित्रमन्दिर भी है। यह नाम इसलिये पड़ा है कि उसकी दीवारों पर चित्रों