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ग्वालियर

मणिकण्ठ के पिता भी कवि थे और पितामह भी। फिर मणिकण्ठ भला क्यों न अच्छे कवि होते ? आप कवि भी थे, नैय्यायिक भी थे और मीमांसक भी थे। सुभाषित के तो आप समुद्र ही थे! मणिकण्ठ की यह पिछली उक्ति हमको बहुत अच्छी लगी। क्योंकि अपने को सुभाषित का समुद्र बतलाने में मणिकण्ठ ने गर्वोक्ति नहीं की;बात सच्ची कही है। आपने इस प्रशस्ति में जो महीपाल की प्रशंसा की है उसके अन्तर्गत आपने २५ श्लोक ऐसे कहे हैं जो दो दो अर्थों से भरे हुए हैं और बड़े ही अपूर्व हैं । इन श्लोकों में आपने महीपाल राजा से जिनकी जिनकी समता दिखलाई है उनके नाम हम नीचे देते हैं-

१ ब्रह्मा
१७ कर्ण
९ सूर्य
२ विष्णु
१८ समुद्र
१० चन्द्रमा
३ बलभद्र
१९ सिंह
११ व्यास
४ काम
२० हाथी
१२ भगीरथ
५शड्कर
२१ कमल
१३ रामचन्द्र
६ कार्तिकेय
२२ कैरव
१४ युधिष्ठिर
७इन्द्रं
२३ आभूषण
१५ भीम
८ कुवेर
२४ चन्दन
१६ अर्जुन
२५ कृष्ण
 

प्रति श्लोक के चौथे चरण में कवि ने महीपाल से यह पूछा है कि जिनकी समता आप में पाई जाती है, बतलाइए, उनके आप कौन हैं ? अर्थात् उनसे आपका क्या सम्बन्ध है ? विषयान्तर हुआ