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पृष्ठ:दृश्य-दर्शन.djvu/५४

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बनारस
मसजिदें

बनारस में जैसे मन्दिरों की अधिकता है, वैसे ही मसजिदों की भी। वहां के निवासियों में कोई एक चौथाई मुसलमान हैं।

औरङ्गजेब की मसजिद गंगा के किनारे है । सुनते हैं, विश्वेश्वर का प्रसिद्ध मन्दिर पहले यहीं पर था। उसीको तोड़ कर उसके और दूसरे मन्दिरों के माल-मसाले से यह मसजिद तैयार की गई है। मसजिद की बनावट सादी है। उसके दो मीनार १४७ फुट ऊँचे हैं। उसको लोग माधवराव का धवरहरा भी कहते हैं । मीनारों के ऊपर से सारे शहर ही का नहीं, किन्तु और भी दूर दूर तक का दृश्य देख पड़ता है। यहां पर पहले बौद्ध लोगों का एक चैत्य था। जब वह हिन्दुओं के कब्जे में आया तब उन्होंने उसे अपने ढंग का बना लियो । मुसलमानों ने उसे तोड़ कर इस मसजिद में लगा दिया। इसकी इमारत में बौद्ध, हिन्दू और मुसलमान तीनों का तर्ज़ देख पड़ता है।

विश्वनाथ के पास की मसजिद भी औरङ्गजेब की खुदापरस्ती का चिन्ह है। अनेक मन्दिरों को तोड़ कर वह बनी है। उसके सामने बौद्धों या हिन्दुओं के मन्दिरों के खम्भों की एक कतार है। मसजिद की पश्चिमी दीवार में लगे हुए मन्दिरों के भग्न भाग अच्छी तरह पहचाने जा सकते हैं।

ढाई कँगूरे की मसजिद इसी नाम के महल्ले में है। यह बड़ी खूबसूरत मसजिद है। इसमें लगे हुए चौकोन खम्भे, और कहीं