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दृश्य-दर्शन

राजा थे जो अँगरेजों को पहले पहल बुंदेलखण्ड में लाये और अँगरेज़ी गवर्नमेंट की अधीनता स्वीकार करके १८०४ और १८११ ईसवी में उससे सनः प्राप्त की। उनके ७ पुत्र थे–४ औरस ३ अनौरस। पर दैवयोग से चार में से एक भी औरस पुत्र न रहा। इससे उन्होंने अपने पौत्र रत्नसिंह को गोद लिया। राजा रत्नसिंह, विजय बहादुरसिंह के अनौरस पुत्र के पुत्र थे। परन्तु उन्होंने इन्हीं को अपना उत्तराधिकारी चुना;औरस पौत्रों में से किसीको नहीं चुना। गवर्नमेंट ने भी इस बात को मंजूर कर लिया।

राजा रत्नसिंह के समय में सिपाही-विद्रोह हुआ। उसमें उन्होंने अंगरेजों का पक्ष लिया। उनकी सब तरह से मदद की। बागियों ने चरखारी किले को घेर लिया और राजा रत्नसिंह से कहा कि महोबे के जाइन्ट मैजिस्ट्रेट कर्न (Kern) साहब को जिन्हें तुमने छिपा रखा है, फौरन हमारे हवाले कर दो। परन्तु राजा साहब ने उसी पथ का अनुसरण कियो जिसका अनुसरण रणथंभोर के हम्मीर वीर ने किया था। उन्होंने बागियों की इस प्रार्थना को घृणा की दृष्टि से देखा। भला भारतवासी, फिर भी क्षत्रिय, शरणागत को अभयदान देकर कहीं उसे शत्रु के सिपुर्द करते हैं ? रक्षा का वचन दिया सो दिया। किले पर अनवरत अग्निवर्षा होती रहने पर भी राजा साहब ने कर्न साहब को अपनी रक्षा में रक्खा। यही नहीं, उन्होंने एक ऐसा काम किया जिसकी समता संसारभर के इतिहासों में बहुत ही कम पाई जाती है। वे कर्न के बदले अपने प्राणोपम पुत्र जयसिंह को विद्रोहियों के हवाले करने पर राजी हो गये। उन्होंने कहा, हम अपनी