पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/९२२

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ह के बाहर निकल कर जरूरी कामों से छुट्टी पाने का बन्दोबस्त करने लगे। इस समय जिन चीजों की सभों को जरूरत पडी वे सब चीजें वहाँ मौजूद पाई गई मगर उन दोनों स्त्रियों पर किसी की निगाह न पडी जिन्हें यहाँ आने के साथ ही सभों ने देखा था। सातवां बयान । जरुरी कामों से छुट्टी पाकर ऐयारों ने रसोई बनाई क्योंकि इस बॅगले में खाने-पीने की सभी चीजें मौजूद थीं और सभों ने खुशी-खुशी भोजन किया। इसके बाद सब कोई उसी कमरे में आकर बैठे जिसमें रात को चलती-फिरतीतस्वीरों का तमाशा देखा था। इस समय भी सभी की निगाहें ताज्जुब के साथ उन्हीं तस्वीरों पर पड रही थीं। सुरेन्द-मैं बहुत गौर कर चुका मगर अभी तक समझ में न आया कि इन तस्वीरों में किस तरह की कारीगरी खर्च की गइ है जो ऐसा तमाशा दिखाती है। अगर मैं अपनी आँखों से इस तमाशे को देखे हुए न होता और कोई गैर आदमी मेरे सामने ऐसे तमाशे का जिक्र करता तो मैं उसे पागल समझता मगर स्वयं देख लेने पर भी विश्वास नहीं होता कि दीवार पर लिखी तस्वीरें इस तरह काम करेंगी। जीत--बेशक ऐसी ही बात है। इतना देखकर भी किसी के सामने यह कहने का होसला न होगा कि मैने ऐसा तमाशा देखा था और सुनने वाला भी कभी विश्वास न करेगा। ज्योति-आखिर तिलिस्म ही है, इसमें सभी बातें आश्चर्य की दिखाई देती हैं। जीत-चाहे तिलिस्म हो मगर इसके बनाने वाले त आदनी ही थे। जो बात मनुष्य के लिये नहीं हो सकती वह तिलिस्म में भी नहीं दिखाई दे सकती। गोपाल-आपका कहना बहुत ठीक है तिलिस्म की बातें चाहे कसा ही ताज्जुब पैदा करने वाली क्यों न हो मगर गौर करने से उनकी कारीगरी का पता लग ही जायगा। यह आपने बहुत ठीक कहा कि आखिर तिलिस्म के बनाने वाले भी तो मनुष्य यीरेन्द-जय तक समझ में न आवे तब तक उसे चाहे कोई जादू कहे या करामात कहे मगर हम लोग सिवाय - कारीगरी के कुछ भी नहीं कह सकते और पता लगाने तथा भेद मालूम हो जाने पर यह बात सिद्ध हो ही जाती है। इन चित्रों की कारीगरी पर भी अगर गौर किया जायगा तो कुछ न कुछ पता लग ही जायगा। ताज्जुब नहीं कि इन्दजीतसिह को इसका भेद मालूम हो। सुरेन्द-बेशक इन्दजीत को इसका भेद मालूम होगा ।(इन्द्रजीतसिह की तरफ देखकर ) तुमने किस तर्कीब से इन तस्वीरों को चलाया था? इन्द-(मुस्कुराते हुए ) मैं आपसे अर्ज करूँगा और यह भी बताऊँगा कि इसमें भेद क्या है। मालूम हो जाने पर आप इसे एक साधारण बात समझग। पहिली दफे जब मैंने इस तमाश को देखा था तो मुझे भी बड़ा हीताज्जुब हुआ था मगर तिलिस्मी किताब की मदद से जब मै इस दीवार के अन्दर पहुंचा तो सब भेद खुल गया। सुरेन्द-(खुश होकर ) तब तो हम लोग बेफायदे परेशान हो रहे हे और इतना सोच-विचार कर रहे हैं। तुम अब तक चुप क्यों थे? गोपाल-ऐयारा की तबीयत देख रहे थे। सुरेन्द्र-खैर बताओ तो सही कि इसमें क्या कारीगरी है ? इतना सुनते ही इन्द्रजीतसिह उठकर उस दीवार के पास चले गये और सुरेन्द्रसिह की तरफादेखकर बोले आप जरा तकलीफ कीजिए तो में इस भेद को समझा दूं महाराज पुरन्द्रसिंह उटकर कुमार के पास चले गये और उनके पीछे-पीछे और लोग भी वहाँ जाकर खडे हो गये। इन्द्रजीतमिह ने दीवार पर हाथ फेरकर सुरेद्रसिह से कहा देखिये असल में इस दीवार पर किसी तरह की चित्रकारी या तस्वीर नहीं है दीवार साफ है और वास्तव में शीशे की है तस्वीरें जो दिखाई देती है वे इसके अन्दर और दीवार से अलग कुमार की बात सुनकर सभी न ताज्जुब के साथ दीवार पर हाथ फेरा और जीतसिह ने खुश होकर कहा- ठीक है अब हम इस कारीगरी को समझ गए ये तस्वीरें अलग-अलग किसी धातु के टुकड़ों पर बनी हुई है और ताज्जुय नही तार या कमानी पर जडी हों किसी तरह की शक्ति पाकर उस तार या कमानी की हरकत होती है और उस समय ये तस्वीरें चलती हुई दिखाई देती है। -- देवकीनन्दन खत्री समग्र ९१४