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देव-सुधा

ओंड़ी चितौनि कहूँ उड़ि लागती बंदन पाड़े जो आड़ न होती, डारतो गदि गुमान गयंदु जो गोल कपोलनि गाड़ न होती; लूटती लोकुलटें सफुलेल हमेल हिए भुज टाड़ न होती, चंदु अचानक च्वै परतो मुग्व-चंदु पैजो चित चाड़ न होतो।

ऑड़ी = टेढ़ी । गाड़ = गड़नि, नम्रता। ल₹ सफुलेल = फुलेल- सहित वेणी ( केश-कलाप)। हमेल = हृदय पर पहनने का एक भूषण । टाड़ = हाथ पर पहनने का एक भूषण, टॅड़िया। चाड़ (चाँड़)= भारी चाह ।

ईगुर-सो रँग एंडिन बीच, भरी अँगुरी अति कोमलतायनि , चंदन-विंदु मनौ दमकै नख देव चुनी चमके ज्यों सुभायनिx; बंदत नंदकुमार तिहारेई राधे बधू ब्रज की ठकुरायनि , नूपुर-संजुत मंजु मनोहर जावक-रंजित कंज-से पायनि ॥१३०।।

  • यदि इंगुर की आड़ ( बुंदी ) आड़े न आती ( रक्षिका

न होती), तो कहीं नायिका के (किसी की) टेढ़ी डीठि ( नज़र) उड़कर लग जाती।

+ गुमान-रूपी हाथी गालों के गड्ढे में गिर पड़ने से किसी को मर्दित नहीं कर सकता।

+यदि टँड़िया से भुज व हमेल से हृदय एक प्रकार बद्ध-से न होते, तो फुलेल लगी हुई लटें सारी दुनिया लूट लेती । प्रयोजन यह समझ पड़ता है कि टॅडिया तथा हमेल भी ऐसी अच्छी हैं कि केवल लटें संसार का ध्यान अपनी ओर नहीं खींच पातीं। भाव यह बैठता है कि लटें, टाड़ और हमेल, सभी बहुत सौंदर्य-विवद्धक हैं।

$ मुखचंद तो अच्छा है ही, किंतु चित्त की चाड़ उससे भी अच्छी है, जिससे केवल मुख पर ध्यान नहीं जमता ।

x नखों की उपमा चंदन-बिंदु तथा चुन्नी, दोनो से दी गई है।