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देव-सुधा


जोबन पायो न पाप लग्यो कवि देव र हैं गुरु लोग रिसो हैं, जी मैं लजैए जुजैए कहूँ, तितपैए कलंक चितैए जु साहैं ॥१४॥

मध्या नयिका का प्रेम वर्णित है । चबायनि-चर्चा तथा निंदा करने- वाले । सोहैं-सामने।

पीर सही घर ही में रही कवि देव दियो नहिं दूतिन को दुख, काहुकि बात कही न सुनी मनु मारि बिसारि दियो सिगसुख, भीर में भूलि कहूँ सरिख मैं जबते ब्रजराज कि ओर कियो रुख, मोहि भटू तबते निसि-दौस चितौत ही जात चवाइन के मुख ॥

चवाइन = चर्चा तथा निंदा करनेवालियों।

कंचन के कलसा कुच ऊँचे समीपहि मैन महीप ठयो है, बाजी खिलाय कै बालपनो अपनो पन लै सपनो सो भयो है; देव कहा कहौं ठाकुर ईठ गयो दुरियो दुरयोग नयो है, जोबन-ऐंठ में पैठत ही मनमानिकगाँठिते ऐंठि लयो है।।१५।।

क्या कहूँ कि इष्ट ( प्रिय ) ठाकुर ( स्वामी, नायक ) छिप गया। यह एक नया दुयोग (बुरा डौल ) हो गया। उस नायक ने नायिका के यौवन की ऐंठ में पैठते ही माणिक्य- सा मन ऐंठ लिया।

नायिका के वियोग का वर्णन है । ठयो है = ठहरा हुआ है। बाजी = खेल । पन =प्रतिज्ञा । गाँठि ते = पास से । ऐठि लयो है =छीन लिया है।

देव मैं सीस बसायौ सनेह कै भाल मृगम्मद बिंदु कै भाख्यो, कंचुकी मैं चुपरयो करिचोवा लगाय लियोउरसों अभिलाख्यो। लै मखतूत गुहे, गहने रस मूरतिवंत सिंगार कै चाख्यो, साँवरे लाल को साँवरो रूप में नैननि को कजरा करि राख्यो।