पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१४८

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देव-सुधा कान्ह कह्यो टेरिकै कहाँ ते आई, को हो तुम, लागती हमारे जान कोई पहिचानती ; प्यारी कह्यो फेरि मुख हेरिजू चलेई जाहु, हमैं तुम जानत, तुम्हें हूँ हम जानती ॥२१७।। खोरि = गली । साँकरी = तंग । निहोरि = नम्रता-पूर्वक । सोहैं = सामने । नातो कहा तुमसों तुम कोहौ जू कान्ह छवो कछु अंग न वाको, क्यों छवै अंग पै देखत हैं जुजराऊ तरौना मैं रूप रवा को; कौने कह्यो हो विजायँठोबाँधनयोंगिरिजातो जुडोरु झबाको , लाल परे लड़ बावरी वात हौं ठंग गनोंगी न नंद बवा को। जराऊ = जड़ाऊ। रवा = रन का टुकड़ा । बिजायँठो = बजुल्ला (भूषण )। मबा (झब्बा)= एक ही में बंधे हुए रेशम या सूत इस छंद में कवि सखी और नायक के परस्पर संवाद का वर्णन करता है। सखी का भाषण उपालंभ-सहित है। ॐ कान में पहनने का श्राभूषण, जो फूल के आकार का गोल होता है । कर्णफूल, कनफूल । + इस प्रकार से बजुल्ला बाँधने को किसने कहा था, यदि झबा का डोर गिर जाता, तो कैसी होती ?

  • लंगरपन की बात में पड़े हो, मैं नंद बाबा को ठेंग न गिनूंगी।

ठेग का प्रयोजन निरादर सूचक अपमान से है। पहले तथा चौथे चरण में सखी के वाक्य हैं, और शेष दोनो में भगवान् के।