पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
देव-सुधा
१५१
 


देव-सुधा येबी अबै वहि ऐबे है बैस मरेंगी हराहरु धूटि घनेरी, जे-जे गनी गुन-गरि नागरि है हैं ते वाके चितौत ही चेरी। दूती का वचन । ग्रामीण नायिका । येबी = एरी ! ऐबे है बैस-जवानी आनी है । लुनाई-लावण्य । ढेरी-समूह । टि-पीकर । घनेरी=बहुतेरी । गनी = गिनी हुई, प्रख्यात । चितौत ही चेरी = देखते ही चेरी (दासी) हो जावेगी । हराहरु = हलाहल, विष । यद्यपि वह गुण-आगरी नागरी नहीं है, तो भी ऐसी नायिकाएँ उसके सहज रूप से चेरी हो जायेगी। कुजनि के कोरे मन केलि रस बोरे लाल तालन के खोरे बाल श्रावति है नित को; अमिय निचोरे कल बोलति निहोरे नेक सखिन के डोरे देव डोले जित-तित को। थोरे-थोरे जोबन बिथोरे देति रूप-रासि , गोरे मुख भोरे हँसि जोरे लेति हित को; तोरे लेति रति - दुति मोरे लेति गति-मति छोरे लेति लोक-लाज चोरे लेति चित को ॥२३४॥ सखी नायक से नायिका का रूप वर्णन करती है। कोरे = किनारे अर्थात् निकट । बोरे = डुबाए हुए । खोरे = गली। बाल = षोड़श वर्ष की बाल्यावस्था की स्त्री; नवयौवना । कल = सुंदर । बिथोरे = फैलाती है, बिथराए देती है । तोरे = तोड़ती है, अर्थात् छीनती है । डोरे = डोरियाए, सखियों के साथ । सखिन को सुख सुने सौतिन के महा दुख ... होत गुरुजनन को गुन को गरूर है;