पृष्ठ:देव-सुधा.djvu/१५७

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देव-सुधा
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देव-सुधा जोबन की जोतिन सों, हीग लाल मोतिन सों ____नख ते सिग्वा लौं मिलि एकै है महा लसी। बो न नि हँसनि मंद चलनि चितौनि चारु ताई चतुराई चित चोरिबे की चाल-सी; संग मैं सहेजी सोन-बेली-मी नबत्ती बाल रँगमगे अंग जगमगति मसाल-सी ॥ २३७ ।। नायिका को कांति का वर्णन । बिसाल = बड़ी ।महा लसी = बहुत शोभित हुई । नबेली = नवीन स्त्री । सोन-बेली = कनक लता । झीनी = बारीक । झाई = ज्योति-पूर्ण प्राभा । देह-दीपति = शरीर की कांति । रँगमगे = रँग (प्रेम ) में मग्न; खूब रँगे हुए। नारि जु बारिज-सी बिकवी रहै प्रेमकसी रिक-सी कल कूज, जा बड़ भाग के भौन बसी तेहि पीतम के चलिक पग छूजै; और कहा कहिए तेहि द्वार की दासी है देव उदास न हूजै, आँखिन को सुख सुदरि को मुख देखत हू दिखसाध न पूजै । स्वकीया नायिका का वर्णन है। बिकसी ( विकसित) = प्रफुल्लित । कूज = कोमल शब्द करती है । दिखसाध = देखने की महती इच्छा। बूझै बड़े बबा नंद को बंस जसोमति माय को मायको बूझत, बोलत बातें बड़ी बन मैं मन मैं वृषभानु बबा सों अरूझत ; देव दवीं हम नेह के नाते न तौ पुरिखा इन बातन जूझत, जीभ सँभारि न काढत गारि हौ ग्वारि गँवारि हमै हरि बूझत । कुलगर्विता नायिका का वर्णन है। मायको = नैहर । जूझत = लड़ते-झगड़ते । बूझत = समझते हो।