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१७
भूमिका
गति अनन्य मुगधानि मैं तनमयता नित होति । अंधकार जरि जात उर प्रेम-दीप की जोति. ।। ४४ ।।
न, अन्य = अबन्य, अर्थात् जिसको दूसरी गति न हो।
- लीन हो जाना।
गति अनन्य मुगधानि मैं तनमयता नित होति । अंधकार जरि जात उर प्रेम-दीप की जोति. ।। ४४ ।।
न, अन्य = अबन्य, अर्थात् जिसको दूसरी गति न हो।