देव और विहारी
उपमा में हमें किसी प्रकार का अनौचित्य नहीं दिखलाई पड़ता, बरन
हम तो इसे आँसू और भोले की उपमा की अपेक्षा अच्छा ही पाते हैं।
जो हो, ऊपर दिए दोनों पाठों में से हमें पहला पसंद है और हम
उसी को शुद्ध मानते हैं। हमारे इस कथन का समर्थन निम्न-
लिखित कारणों से और भी हो जाता है-
(१) देवजी के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध मुद्रित अथवा अमुद्रित ग्रंथों में भी
पहला ही पाठ पाया जाता है, जैसे रस-विलास, भवानी-विलास,
सुजान-विनोद,सुखसागर-तरंग तथा शब्द-रसायन आदि। हमारे पास
शब्द-रसायन की जो हस्त-लिखित प्रति है, वह संभवतः देवजी के
मरने के ५० वर्ष बाद लिखी गई है। दूसरा पाठ देवजी के किसी ग्रंथ
में नहीं है, उसका अस्तित्व कविता-संबंधी संग्रह-ग्रंथों में ही बतलाया
जाता है । देवजी के मूल ग्रंथों के सामने संग्रह-ग्रंथों का मूल्य कुछ भी
नहीं है।
(२) देवजी ने इस छंद को एकदेशीयोपमा के उदाहरण में
रक्खा है । इस उपमा का चमत्कार श्रोले और मुख के साथ ही
अधिक है । एकदेशीयता की रक्षा यहीं अधिक होती है।
(३) अन्य कई विद्वानों ने भी पहले ही पाठको ठीक ठहराया है।
३-महाकवि देव *
. महाकवि देव का जन्म सं० १७३० विक्रमीय में संभवतः इटावा
नगर में हुआ था। कुछ विद्वान् इनका जन्मस्थान मैनपुरी बतलाते
हैं। कुछ समय तक मैनपुरी और इटावा-ज़िले एक में सम्मिलित
रहे हैं। संभव है, जब देवजी का जन्म हुआ हो, उस समय भी
ये दोनों ज़िले एक में हों । ऐसी दशा में मैनपुरी जिले को देव
का जन्मस्थान बतलानेवाले भी भ्रांत नहीं कहे जा सकते । देवजी
देवशर्मा ( द्यौसारिहा-दुसरिहा ) थे । यह बात विदित नहीं कि
- यह लेख कानपुर के हिंदी-साहित्य सम्मेलन में पढ़ा गया था।