पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१२०

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स्त्री-पुरुष क्षत्री, जो हीरान की धरती पहचानने लेने परेंगे । तब यह सुनिकै उन ठगन कही. जो - अब हम तुमकों सर्वथा नहीं मारेंगे । और तुम्हारे संग चलेंगे । तुम्हारे गुरु की सरनि जाइंगे। तब वैष्णव जान्यो. जो-अब ये हमको न मारेंगे । तव वैष्णव ने फेरि तलाव में जाँड के विनती करी. जो - महाराज ! अव तो ये मोकों मारत नाहीं। अव में कहा करों ? तव श्रीगुसांईजी कहे. जो - तू टगन सों प्रसन्नतासों कहवाय लीजो, जो - अपनो वैर तुम भरि पाए । तब वे कहे. जो - हम भरि पाए । तब यह कहाय के तृ सुखेन अपने घर जा। तव वा वैष्णव ने तलाव के वाहिर आय उन ठगन सों कही, जो - तुम नाहीं मारत तो प्रसन्न होइ के कहो, जो- हम अगिले जन्म की वैर भरि पाए। तब वे ग्यारह हू मिलिक कहें, जो- हम अगिले जन्म को बैर भरि पाए। तब वह वैष्णव उनके पास आयो । इतने में चारि मनुष्य सीधो सामान ले आए । तव वैष्णव ने न्हाय के रसोई करी। पाछ श्रीठाकुरजी सों भोग घरयो। पाछे समय भए भोग सरायो । अनोसर कियो । पाठे उन ठगन सों कही. जो-तुम महाप्रसाद लेउ । तव ठगनने कही. जो - हम गाम में जॉई रसोई करि महा- प्रसाद लेइंगे । तव वैष्णव ने कही. जो-महाप्रसाद वोहोत है। कछ अनसखड़ी काल्हि की धरी है। सोऊ धरि लेईंगे। नव सवन को पातरि धरि वैष्णवने महाप्रसाद लियो। पाठे सांझको गाम में जॉइ के एक आछी ठौर देवि के साथ रहे। ये ठगन के समाचार चैप्णव ने उन मनुष्यन मों नाहीं कह । नव वे टग आपुस में कह. जो- यह वैष्णव कोई महापुरुप हैं। जो - हमने इतनो कप्ट दियो परि इनने अपने मनुष्य मो नाहीं कयो ।