पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१५२

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दो भाई पटेल, राजनगर के के दरसन करि कै पाछे अपनी कोटरी में आइ कै रसोई करते। पाछे ध्वजा सन्मुख भोग धरि कै महाप्रसाद लेते । पाछे घरी दोई सोय रहते । ता पाछ संध्या सेन के दरसन करि के पाळे अपने घर आय किवाड़ लगाई के वे दोऊ जनें भगवद्वार्ता करते । सो सगरी रात्रि भगवद् वार्ता करते । सोवते नाहीं । दुपहरि को प्रसाद ले के सोय रहते । रात्रि को न सोवते ऐसे नित्य करते । सो श्रीगोवर्द्धननाथजी इनकी वार्ता सुनिवे कों यधारते। भावप्रकाश-काहेते. जो - श्रीगोवर्द्धननाथजी तो जहां दोई वैष्णव भगवद् वार्ता करते होई, तहां पधारत हैं। सो वात चाचा हरिवंसजी और कृष्ण भट के प्रसंग में आगे कहि आए हैं । तातें श्रीगोबर्द्धननाथजी भगवद् वार्ता के विसनी हैं। सो जहां कहूं एकांत में वैष्णव भगवद्वार्ता करे वहां अबस्य श्रीगोवर्द्धननाथजी पधारत हैं। सो एक दिन ये दोऊ भाई पटेल अपनी कोटरी में भग- बद् वार्ता करत रसावेस भए । ताही समै श्रीगोवर्द्धननाथजी दोऊन के बीच में प्रगट होई कै दरसन दिये। ता दिन तें सदैव दरसन देते । पाछे इन पटेल वैष्णवन के बेटा बुलावन आए । परि ये दोऊ गये नहीं। सदैव श्रीगोवर्द्धननाथजी की सेवा, ब्रजवास, भगवद् वार्ता करते । भावप्रकाश-या वार्ता में इह जतायो, जो - चैष्णव कों भगवद्वार्ता किये वितु सर्वथा न रहनो । काहेत ? जो - भगवद्वार्ता किये ते श्रीठाकुरजी आप सुखी होत हैं । सो भगवद् वार्ता ऐसो पदारथ है । सो ये दोऊ भाई पटेल वैष्णव श्रीगुसांईजी के ऐसे कृपा- पात्र भगवदीय हते। तातें इन की वार्ता को पार नाही, सो कहां ताई कहिए ? वार्ता ।।१०९॥