पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/१८२

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वेनीदास, दामोदरदास, दो भाई बनिया, सूरत के फूलघर, पानघर भंडार की सेवा करो । तव इन कही, जो- महाराज ! सेवा तो आपकी करें और फूलघर, पानघर, भंडार की सेवा तो न करेंगे। तव श्रीगुसांईजो ने कही, जो - हमारी खवासी करो । तव ये दोऊ भाई प्रसन्न होइ कै एक तो घर सोवते और एक यहां मंदिर में सोवें । सवेरे बेगि उठि के वे हू आवते । भावप्रकाश-~यामें यह जताए, जो - रात्रि को घर में श्रीठाकुरजी कों अकेले न छोरने । काहेते ? बालक हैं. तातें डरपे । सो दोऊ मिलि के कीर्तन करते । जव श्रीगुसांईजी जागे तब एक जनो तो श्रीगुसांईजी कों दंतधावन करावें । और एक सैया उठावें । बुहारी करें । पाछे दोऊ जने श्रीगुसांईजी कों तेल लगाय न्हवावते । पाछे श्रीगुसांईजी आप तिलक मुद्रा करि के मंदिर में पधारते । ता पाछे दोऊ भाइ जाँइ के अपने घर न्हातें। सो एक सामग्री करे, एक सिंगार करे। पाछे राजभोग धरि कै भोग सराय कै एक तो उहां रहे। सो वैष्णवन को महा- प्रसाद लिवावे । एक श्रीगुसांईजी के पास आवते । सो श्रीगुसां- ईजी भोजन करि कै पोढते। तवं घर आय के महाप्रसाद लेते। या प्रकार श्रीठाकुरजी को सब सामग्री नित्य करते। जो- महाप्रसाद लेवे जानो होइ. तो हू सामग्री तो उतनी ही समर्पते नित्य, घटतीन करें। या प्रकार भाव सों भगवद् सेवा. गुरुसेवा, करते । रात्रि को श्रीमुख ते कथा सुनते। वैष्णव मंडली में वार्ता सुनते। सो एक दिन श्रीगुसांईजी इनकी सेवा देखि के प्रसन्न भए । तव आपने कही, जो - तुम्हारे कहा मनोरथ है ? तुम कछ