२२० दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता पाछे दंडवत् करिके बैठे । पाछे श्रीगुसांईजी भोजन कों पधारे। सो भोजन करिकै फेरि अपनी बैठक में पधारे। तव श्रीगुसांईजी आप भीतरिया कों श्रीमुख ते आज्ञा दीनी,जो-मधुसूदनदास को महा- प्रसाद की पातरि पठवाइयो । तव भीतरिया ने मधुसूदनदास कों पातरि पठाई। सो मधुसूदनदास ने महाप्रसाद लियो। ता पाछे श्री- गुसांईजी विश्राम करि के जागे । इतने में उत्थापन को समय भयो। सो स्नान करि कै श्रीनवनीतप्रियजी के मंदिर में पधारे । सो संखनाद करवाये । पाछे नवनीतप्रियजी के दरसन सब वैष्णव को कराए । ता पाळे श्रीगुसांईजी सेन पर्यंत सेवा सों पोहोंचि के अनोसर करि अपनी बैठक में पधारे । सो श्रीसुबोधिनीजी की कथा कहे । सो मधुसूदनदास सुने । सो बोहोत प्रसन्न भए । पाछे श्रीगुसांईजी आप पोढ़वे कों पधारे। ता पाछे प्रातःकाल श्रीगुसांईजी आप श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन करिवे कों पधारे । सो. मधुसूदनदास हू साथ हुते । सो श्रीगोवर्द्धननाथजी को राजभोग कौ समै हुतो । तब श्रीगुसां- ईजी तत्काल स्नान करि के मंदिर में पधारे । सो राजभोग समयों। ता पाठें राजभोग आरति करी। तब मधुसूदनदास ने श्रीगोवर्द्धननाथजी के दरसन किये । सो साक्षात् कोटि कंदर्प लावन्य के दरसन भए । पाछे श्रीगुसांईजी अपनी बैठक में पधारे । तब मधुसूदनदास हू श्रीगुसांईजी पास आए। ता पाछे श्रीगुसांईजी ने पूछी, जो- मधुसूदनदास ! तुमने दरसन किये ? तब मधुसूदनदास ने कह्यो, जो-महाराज ! आपकी कृपा तें। ता पाछे श्रीगुसांईजी ने कह्यो, जो-श्रीगोवर्द्धननाथजी को महा- प्रसाद पठावत हूं सो तुम लीजियो। पाऊँ श्रीगुसांईजी ने भोजन
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