। ताते प्रभुन २३६ दोमी बावन वणवन की वार्ता सर्वथा खरचनो नाहीं । काहे तें, जो - वह द्रव्य नो प्रभु को है के उपयोग में ही ल्यावनो। तव दोऊ भाई पटेल ने राजा के मनुष्य सों कयो, जो काल्हि तुम दोइ रुपैया ले जैयो। आज हमारे पास नाहीं है। तव राजा के मनुष्य ने कही, जो-काल्हि मैं नाहीं फिरोंगो। आज मैं जात हों। तुम जरूर रुपेया दोई करि राखियो। ऐमें कहि के राजा को मनुष्य गयो। पाछे दोऊ भाई पटेल ने कह्यो, अव कहा करिये ? दोई रुपैया श्रीठाकुरजी के वृथा जात हैं । तव छोटे भाई ने बड़े भाई सों कह्यो, एक उपाय है । एक अंधियारी कृप है । तामें कीच बोहोत हैं। ता कुआँ पे आपुन दोऊ चलि के वह तलाव पर देवी है ताकों अर्द्धरात्रि में उठाय के वा कुआँ में धरि आओ। तब राजा दंड काहे को लेइगो ? तब बड़े भाई ने सुनि के कह्यो, जो - यह तू भलो विचार कियो । पार्छ जव अर्धरात्रि भई तब दोऊ भाई पटेल उह तलाव पैं जाय कै अंध्यारे कुआँ में देवी को धरि आए। तव देवी वाही समे विकराल रूप धरि के वा गाम के राजा पास वाही समै रात्रि को गई । सो जाँइ कै राजा को जगायो । राजा-रानी दोऊ विकराल स्वरूप देखि कै डरपे। मन में कहें, जो - अव हम न बचेंगे। यह हमारो प्रान लेइगी। तव राजा मन में धीरज धरि कै कह्यो, जो - तुम कौन हो? और कहा निमित्त इहां आए हो? तब देवी कह्यो, तू मोकों वोहोत दुःख दियो है । तात मैं अब तोकों खाउंगी । तब राजा ने जानी, जो - यह देवी है । तब राजा ने कह्यो, जो माता ! मैं तुम कों कहा दुःख दियो है ? सो तुम कहो । तुमने तलाव पै मंदिर ज
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