पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३०९

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३०६ दागी बन जानकी डोकरी ने आठ बेर काल को पाली फरयो । पाई, श्रीगुसांईजी ने वा ढोकरी ने कही. जो - भली ! आठ बर काल को फंग यथाग, मो कल तो दया बिचारि । भन्ली. काल को मान देना। तव डोकरी ने कही, जी- गहागन में तो आप के बम हो. काल के बम नाहीं। और मेरे लालजी की मेवा कीन कन्गो? तव श्रीगुसांईजी ने कहीं, जो-हमारे घर लालजी पधगऊ। नय डोकरी ने कही. जो - भले, महागज ! आप की निधि आप पधगयो । नव वा डोकरी ने वैभव मलिन श्रीठाकुरजी. श्रीगु- मांईजी के घर पधराण । और जो घर में हनी, मो मत्र श्री- गुसांईजी को समायो । नव श्रीगुसांईजी ने कन्यो, जो - कर तो राखि ले । तव वा डोकरी ने कही. जो - अब मेरे कहा करनी है ? पाई थोरेगे दिन रहि के वा होकरी ने लौकिक देत छोरि के अलौकिक देह तं काल के माथे पग दे के व्यापि वकुंट के विपे प्रवेस करत भई। भावप्रकाग-यामें यह जनायो, जो - भगीर यगा साल के आरीन नाही है। नात गोपालदामजी गा- 'चित्रगुप्त कागद कामिला मग्न जो जन आल्या ।' ताते मन, बन, कर्म करि जी-जोर श्रीमहाप्रभुनी की मग्न गान है तामों काल इ डग्पन है । यह मिद्रांत कायो । सो वह डोकरी श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपापात्र भगवदीय हती। तातें इन की वार्ता को पार नाहीं, सो कहां ताई कहिए । वार्ता ॥१४४॥ अन्य श्रीगुमाईनी के सेवक पक घिरा हतो, मी या गुजगत में रहगो, तिनकी यार्ता को भाय कपात:- भावप्रकाश--ये सात्विक भक्त है । लीला में इन को नाम 'पंच' गोप है।