पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता श्रीगुसांईजी कृपा करी के वाको नाम सुनाए । दूसरे दिन उपवास करवाय कै वा कुनवी को निवेदन करवाए। तव कुनवी वैष्णव ने यथासक्ति भेंट कीनी। ता पाछे श्रीगुसांईजी आप रसोई करि कै श्रीठाकुरजी को भोग समर्यो। समय भये भोग सराय आचमन मुखवस्त्र कराय आप भोजन किये। ता पाळ आचमन करि वीरा आरोगि कैगादी-तकियान के ऊपर विराजे। और सव ब्रजवासी टहलुवान में महाप्रसाद लियो। और वा पटेल ने हू लियो। सो महाप्रसाद लेत मात्र ही वा पटेल कों मार्ग को ज्ञान भयो । सो मार्ग हृदयारूढ भयो । ता पाछे श्रीगुसांईजी आप श्रीसुवोधिनीजी की कथा कहें । सो वा कुनबी वैष्णव ने सुनी। सो ऐसें केतेक दिन ताई आप वा खेरा में विराजे । ता पाछे श्रीगुसांईजी आप द्वारिका कों पधारे । सो श्रीरनछोरजी के दरसन किये। पाछे कछक दिन उहां विराजे। ता पाछे श्रीरनछोरजी सों बिदा होंइ कै चले। सो श्रीगोकुल आय पहोंचे । श्रीनवनीतप्रियजी के दरसन किये । वार्ता प्रसग-२ और वा कुनवी पटेल के गाम के पास एक वड़ो गाम हतो। तामें वैष्णव को बोहोत ही समाज हतो। और वैष्णव- मंडली, वार्ता-कीर्तन नित्य होते । सो वा गाम में एक ताहसी वैष्णव मुखिया हतो। सो वाके पास यह कुनवी जातो । सो यह कुनबी वैष्णव श्रीठाकुरजी की सेन-आर्ति करिके अपने घर तें चलतो । सो रात्रि घरी छह गए पाछे उहां जाय पहोंचतो। सो सब वैष्णवन सों श्रीकृष्ण-स्मरन करि कै बैठतो। ता पाळे कथा-वार्ता सुनतो। पाछे रात्रि सवा पहर वाकी रहती तव