सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/३८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३८४ दोगी गायन वैष्णन की वार्ता पाठें एक समय श्रीगुसांईजी आगरे पधारे । मो रूपचंद- नंदा के घर उतरे। तब सब वैष्णवन ने श्रीगुमाईजी मां कहीं, जो - महाराज ! वृंदावनदाम छबीलदान आप के मेवक भार । सो ये दोऊ जनें श्रीठाकुरजी की मेवा-मामग्री में बड़े चतुर हैं। और भगवद्वार्ता में बडो प्रेम विस्वास है। मां मुनि के श्रीगुसांईजी वोहात प्रसन्न भए । सो उन प श्रीगुसांईजी सदा प्रसन्न रहते। भावप्रकाग--या वार्ता में यह जनाए. जो - णार को टंक चरिए । शीर भगवत्सेवा को स्वम्प बताए, जो- निन्य-नानन मामग्री सिंगार उत्पादक कन्न। सो वे वृंदावनदास छवीलदार श्रीगुसांईजी के गमें परम कृपापात्र भगवदीय हते। तात इन की वार्ता कहां ताई कहिए। वार्ता ॥१५॥ अब श्री गुमाईजी के मेधक म्री पुरुष, माहान, गुजरात, मो गी ग नीचे दप लेइवे गई, तिनकी घार्ता की भाय फाहन भावप्रकाग--ये दोऊ सात्विक भक्त है । लीला में उनको नाम 'कलमिका' 'कर्णिका' हैं। सो स्त्री 'कलसिका' को प्रागट्य है और पुरुप 'कर्णिका' की प्रागटय जाननो । ये दोऊ 'सुंदरी' तें प्रगटी है । तातें उन के भावरूप ये दोऊ गुजरात में ब्राह्मन के जन्मे । मो दोऊन को ब्याह भयो । पाठे दोऊन के माता-पिता मरे । तर दोऊ वरस पचोस-तीस के हे। सो दोऊन आपुम में विचार किये, जो - होई तो कासी विस्वेस्वर के दरसन करि आवे। पाछे दोऊ कासी विस्वेस्वर के दरसन को गुजरात तें चले । मो केतेक दिन में कासी आए । सो ता समै श्रीगुसांईजी आप कासी विराजत हुते। सो उहां विस्वेस्वरजी के मंदिर आर्गे,मायावादिन तें सास्त्र-चर्चा कर रहे हते। तहां इन स्त्री-पुरुप को श्रीगुसांईजी आप के दरसन भए। सो महा अलौकिक दरसन भए । तब दोऊन के मन में आई, जो,-इन के सेवक हूजिए तो आछो । पाछै श्रीगुसांईजी मायावादिन को निरुत्तर करि सेठ पुरुषोत्तमदास के उहां पधारे । तब ये दोऊ स्त्री-पुरुप ह श्रीगुसांईजी के "