३८६ दामी पावन वणन की बात तव पुरुप ने कही, जो-आलो ! वैभव मों कग्यिो । पछि दोऊ स्त्री-पुरुष संवरे उठे । मा उठि के पुरुप ने मीनों को. जो - तृ एक काम करि । तब म्बीन कही. जो-कहा ? तव पुरुप ने कही, जो- यहां ते कोस एक ऊपर एक स्ख है । मो नहां जॉय के ता रूख के नीचे खोदियो। मां द्रव्य निकगंगो। मो टोकरी भरि, ल्याय के वैभव सा मेवा करियो । तव स्री वा व नीचे गई। तव द्रव्य निकस्यो । सो टोकरी भरी । नव रब में मों वानी भई । जो - हम को त कछ दे जा । तब दव्य ले जा। तव स्त्रीनें कही. जो - तुम को कहा चहिए ? तब बाने कही, जो एक झारी को फल दे जा, तब यह द्रव्य की टोकरी ले जा। तव याने कही, जो - येतो न देउंगी । तब वाने कही, जो अधिक होइ सो त राखियो। घटती होइ सो में राग्बंगो। अब तृ अपने मन सों विचारि, जो-तृ कितनी झारी भरे है ? तब वह स्त्री अपने घर आई । सो सव समाचार अपने पुरुष सों कहे। तव पुरुप ने कह्यो, जो - निष्कंचनता सी झारी भरे. मेवा करे. ताके फल कौ कहा कहनो। एक एक पेंड को फल, सौ अश्वमेध यज्ञ तेंहू ज्यादा है। अव तृ विचारि.जो- झारी को फल कितनो है और ये द्रव्य कितनो है ? पाछे वह स्त्री ने कवह द्रव्य की कामना कीनी नाहीं। और अपने मन में कहे, जो-मैं झारी ही भरिखो करूंगी। सो वह स्त्री निष्कंचनता सों झारी भरे. और सेवा करे। तव श्रीठाकुरजी इन कों हू अनुभव जतावन लागे। सो वे स्त्री-पुरप निष्कंचनता सों सदैव सेवा करते । भावप्रकाश-या वार्ता को अभिप्राय यह है, जो - कोऊ निष्कंचन दीन व्है निष्काम भाव सों भगवत्सेवा करत है, तापें श्रीठाकुरजी आप प्रसन्न होत हैं । और झारी को माहात्म्य जताए, जो - वाके बरावरि कोऊ फल नाहीं।
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