पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२ दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता ताही प्रकार तुम करो। पाठें श्रीठाकुरजी कों अनोसर करि कै सबन को महाप्रसाद लिवायो। या प्रकार आपु ही सव करि कै सवन को आचार की विधि सिखाई । सो वे थोरेसे दिन में परम भगवदीय भये। तव वह लरिकिनी को सुसर तथा और ह लोग लुगाई कहन लागे, जो-हम पर श्रीगुसांईजी और श्रीठाकुरजी की कृपा भई है सो सव या वहू के प्रताप तें भई है । याही की कृपा तें हमारो अंगीकार भयो है । ता दिन तें वह वहू को सव कोऊ भगवदीय करि कै जानन लागे। और घर में सव तें अधिक करि कै मानते । भावप्रकाश-या वार्ता को अभिप्राय यह है, जो - ताप करि प्रभु वेगि प्रसन्न होत हैं । तातें वैष्णव को मन में ताप राखनो। सो वह वह श्रीगुसांईजी की ऐसी कृपापात्र भगवदीय ही। तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिये । वार्ता ॥ ९२॥ . अव श्रीगुसाईजी को सेवक तोन तवा घारौ वैष्णव, ब्राह्मन, सिद्धपुर को, तिनकी वार्ता को भाव कहत है- भावप्रकाश-ये सात्विक भक्त हैं । लीला में इनको नाम 'जयश्री' है, सो जयश्री में श्रीस्वामिनीजी को अलौकिक सौंदर्य है । तातें श्रीठाकुरजी इनके अधीन व्है रहत हैं। ये 'छविसिंघी' तें प्रगटी हैं। तातें उन के भावरूप हैं। ये सिद्धपुर में एक ब्राह्मन के प्रगटे । सो जन्मत ही भगवन्नाम को उच्चार किये । 'श्रीकृष्ण' ऐसें कह्यो । रुदन कियो नाहीं । तव इन के माता-पिता आश्चर्य करन लागे। ता पाछे दिन तीन ताई माता को दूध पियो नाहीं। तब माता को बोहोत चिंता भई, जो- यह बालक जियेगो नाहीं। तब माता ने गाइ को दूध दियो, सो इन कछूक पियो । तव इन को गाइ को दूध देन लागे। पार्छ बरस पांच को यह वालक भयो । ता दिन तें यह बालक श्रीकृष्ण नाम को जप करन लाग्यो । काहू सों बोले नाहीं । काहू के पास बैठे नाहीं । विरक्त सो रहे ।